Book Title: Chaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Author(s): Manivijay
Publisher: Jain Sangh Boru
View full book text
________________
चौमासी
ते
व्याख्यान ॥
॥ ७४ ॥ व्या
मा पुन्य बांधवा इंहां आव्यो छे, के पुन्यने बाळीने भस्मीभूत करनारा क्रोधने अंगीकार करवा आव्यो छे ? चाल स्थिर था ! एक चित्ते धर्म श्रवण कर. आवीरीते क्रोधने पण मारी मुकवाथी मोहराजाने खबर पडी, ते भूमि उपर हाथ पछाडी त्राड मारी बोल्यो के, अरेरे म्हारा पांच सुभटोने मार्या, तो तेने धूळमां रोळी नाखनार कोइ छे के ? एटलामां छट्ठो काठीयो प्रमाद नामनो उठ्यो, तेणे त्यां जइने शत्रुने जीतवानी प्रतिज्ञा करी बीडं जडप्युं. मोह महिपतिने नमस्कार करी कहे छे के, हे नाथ ! तुं त्हारा सेवकनुं पराक्रम हवे जो जे मोटा मोटा देव दानव अने मानवनी म्हारा पासे कशी ताकात नथी, मोटा मुनियोने पण क्षण मात्रमां लड़बहावी मुकुं कुं, तो आ रांकडो वीचारो शा हीसाबमां छे. मोहराजाये साबाशी आपवाथी ते जल्दी त्यां गयो, अने तेना शरीरमां निद्रारूपे प्रवेश करी गयो. तेथी भव्य जीवने दर्शनावरणी कर्मना उदये निद्रा आववा लागी, निद्राथी मोंयपर माथु नमाववा मांड्युं, झोकां खावा लाग्यो, मुखमांथी लाळ पडवा मांडी, बगासा उपर बगासा आववा मांडया, बधी इंद्रियोनो व्यापार रोकाणो, चेतना नष्ट थइ गइ अने उंधमां ने उंघमां पागलना भा पेठे जीहां, जी जी लववा मांडयो. हाथमां माथु राखी भूमी संघवा लाग्यो. स्वप्नना पेठे पोकार पाडवा मांड्यो, नासीकारूपी वीणा वागवा मांडी, पाडाना पेठे लांबा टांटीया पोळा करीने पड्यो, जाणे के हवे मरवानी तैयारी छे, तेवी षां रीते गळा अने नासिकामांथी घरड घरड शब्द थवा मांडया, किंबहुना साक्षात् मडदा जेवी दशा निद्राये तेनी करी दीधी अने निद्रा जयशील बनी गइ अने मोह महिपतिने समाचार आप्या तेथी तेणे बहु ज खुशी थइने तेने स्वर्ग, मृत्यु अने पातालनुं राज्य आपी, तेमां राज्यगादि करी वसवानी आज्ञा आपी, एवामां भव्य जीवनी कांइक स्थिति बदलाइ तेणे
नुं
स्व
तेर
काठीयातुं
र स्वरूप ॥
ख्या
का
ठी
या
रु
॥ ७४ ॥

Page Navigation
1 ... 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186