Book Title: Chaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Author(s): Manivijay
Publisher: Jain Sangh Boru

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Page 175
________________ 65 ते तेवी शीतलता पण नरकना जीवोने असह्य सहन करवी पडे छे. वळी कोइक परमाधामीयो कुंभीपाक, भटित्रपाक, अष्टपाक, लोहीपाक विगेरेथी नरकना जीवोने वेदना उत्पन्न करे छे. कोइक परमाधामी जीवोने जंत्रमां नाखी ताणे छे. कोइक पर सी माधामी घाणीमां नाखी जीवोने पीले छे. कोइक परमाधामी बन्ने बाजु सामसामा रही करवतथी मस्तकने वेरे छे, कोइक परमाधामी वे पग पकडी नीचे कांटावाली शिल्लापर तेनुं माथु पछाडी धोबीना पेठे धोवे छे. कोइक परमाधामी जीवोने असीपत्र बनने विषे खीजडाना जाड नीचे राखे छे, तेना उपरथी पत्ररूपी तरवारना जाटका पडवाथी शरीरना खंडोखंड करी नाखे छे. कोइक शूली उपर जीवोने चढावे छे, कोइक तलवारथी, छरीथी, बरछीथी, भालाथी, कातरथी, कुहाडाथी, ध्या चक्रथी, करवतथी, नारकीना जीवोना हाथ, पग, कान, नाक, होठ, बाहु, गलु, कम्मर, पेट, विगेरेने कापे छे, कोइक जीभने ठी मा ल्या न र छे छे, कोइक आंखोने काढी ले छे, कोइक पेटने चीरी आंतरडा बहार काढे छे, कोइक काखने भेदे छे, कोइक पथ्थरथी, मुद्गरथी, त्रिशूलथी, गदाथी, घणथी मस्तकने विषे हणी नाखे छे. कोइक कांटानी वाडमां नाखी दे छे, कोइक अग्निमां नाखे छे, कोइक मल-मूत्र-रुधिर-परुथी भरपूर भरेल वैतरणी नदीमां नाखे छे, तेनी असह्य दुर्गंध नहि सहन करवाथी, तेमज अनंती वेदना थवाथी काढो रे काढो एवा प्रकारना पोकारो दारुण दुःखथी पाडे छे, तेने बहार काढी तलवारथी टुकडे टुकडा करी षां नाखे छे. कोइक तृषा पामेला जीवोने रुधिर, सीसु, तांबु, तपावी पाय छे, तेथी कलकल करता त्राहि त्राहि पोकारे छे. कोइक स्व ติ │弱 का अति तपावेल वेलुने विषे नाखी तपावे छे, कोइक मांसना भक्षण करनारा हता, तेने तेनुंज मांस ककडा करी अग्निमां तपावी खवरावे छे. कोइक परस्त्रीना सेवन करनाराओने लोखंडनी ज्याज्वल्यमान पुतली तपावी आलिंगन करावे छे. कोइक अग्निथी रू

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