Book Title: Chaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Author(s): Manivijay
Publisher: Jain Sangh Boru
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त्यां आव्या, हाथी उपरथी नीचे उतरी, छत्र, चामरो, मुकुट, उपानह अने वाहन तांबुलादिकने त्याग करी, समवसरणमा प्रवेश करी राजाये तथा इंद्रोये, देवोये, देवांगनाओये साधु-साध्वीयोये मनुष्यो अने मनुष्यनी स्त्रियो विगेरेये, भगवानने प्रदक्षिणा करी पोतपोतानी दिशाथी प्रवेश करी, सर्वे उचित आसने बेठा, आ प्रकारे बार पर्षदा बेठी, हवे शास्त्रकार महाराजा बार पर्षदानुं वर्णन करे छे.
___ यत उक्तम् शलाकापुरुषचरित्रे भगवद्भिहेमचन्द्रप्रभुपादैः प्रविश्य पूर्वद्वारेण, निषेदुः साधवः क्रमात् । वैमानिकस्त्रियः साध्व्य-श्चोर्ध्वा एवावतस्थिरे॥१॥
भावार्थ:-साधु-साध्वीयो अने वैमानिकनी देवीयो पूर्व दिशाने विषेथी प्रवेश करी भगवानने नमस्कार करी | अग्नि खूणने विषे बेठा, परंतु साध्वीयो अने वैमानिकनी देवीयो भगवाननी वाणी उभा थका ज सांभले आवो क्रम छे.
प्रविश्यपाच्यद्वारेण, नत्वाऽर्हतं च नैरुते । अतिष्ठन् भवनपति-ज्योतिष्क-व्यंतरस्त्रियः॥२॥ - भावार्थ:-भूवनपति, व्यंतर अने ज्योतिषीनी देवीयो, दक्षिण दिशाथी प्रवेश करी भगवानने नमस्कार करीने नैरुत खूणे बेठी.
प्रविश्य पश्चिमद्वारा-हतं नत्वावतस्थिरे। भवनाधिपति-ज्योति-ध्यंतराश्च मरुद्दिशि ॥३॥
भावार्थः-भूवनपति, व्यंतर अने ज्योतिषीना देवो पश्चिम दिशाथी प्रवेश करी, भगवानने नमस्कार करी वायव्य खणे बेठा.
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