Book Title: Chaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Author(s): Manivijay
Publisher: Jain Sangh Boru

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Page 158
________________ तेर सी र स्वरूप ॥ ॥ ७७ ॥ व्या स्या ठी पण तेवामां वली कांइक सारो विचार आव्यो के अरेरे! हुं महा मूर्ख हूं, कोइ गमे तेम भय बतावे, तेमां म्हारे शुं ? में फोगटना खोटा विचारो कर्या ! पण भय शानो ! जेणे कोइनो अपराध कर्यो होय, कोइनी चोरी करी होय, कोइनुं ५ काठीयानुं कांइ बगाड होय, तेने भय छे, पण बीनगुन्हेगारने भय शानो ! अरे ! वली मूर्खाओने ते बुद्धि होती हशे में फोगट गुरुमहाराजनो उपदेश रस नहि पीता ढोली नाख्यो, खेर एटलं भाग्यमां नहि. चाल जीव ! सज्ज था, अने धर्मश्रवण करी भाग्यशाली था, आवी रीते भयने निवारण करी शास्त्रश्रवण करवा बेठो, ते खबर मोहराजाने थवाथी रोषारुण नेत्र करी 5 बोल्यो के, अरे ! कोइ छे के. एटले शोके उभा थह हाथ जोडी कह्युं के, जी हां, अन्नदाता, आ सेवकपर निगा थाय के तुरत जाउं छं. मोहराजाये तेने रजा आपवाथी गयो, अने धर्मश्रवण करनाराना शरीरमां पेठो, एटले वली पाछो उंची आंखो करी जोवे छे, तेटलामां तो नवनवा वस्त्रालंकारने धारण करनारी स्त्रियोनुं मंडल आवतुं देख्युं, तेमां उत्तम प्रकारना तो तेना रूपो छे, तेमां वली स्नान मानने करवाथी अधिक शोमे छे, तेमां पण पांचसो पांचसो, हजार हजार, रुपीयाओनी साडीयो पहेरी छे, तेमां पण एक जातनी नहि, परंतु लीली, पीली, लाल, गुलाबी, धोली, विगेरे प्रकारनी पहेरेली छे. वली मखमलना कंचुआमां झींक अने झरीयानना बुट्टा भरेला छे. वली तेमां पण कंठमां किमती मुक्ता फलनी मालाओ पहेरी छे, हाथमां चमकता सुवर्णना कंकणो अने बांहे बहेरखा लाकीटो शोभी रहेला छे. नाकमां मोतीनी सुंदर वाळीयो, अने कानमां एरींगो पण लटकी रहेला छे, दसे आंगलीयोमां वेढ वींटीयो हीराजडीत शोभी त रहेली छे, ने पगमां झांझर झुमझुमी रहेला छे. एवीयो, झांझरना झमकारा, अने घुघरीयोना धमकाराने, करतीयो चौमासी व्या ख्यान ॥ भा षां का या स्व रू ॥ ७७ ॥

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