Book Title: Chaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Author(s): Manivijay
Publisher: Jain Sangh Boru

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Page 178
________________ चौमासी करवाणुं, इत्यादिक आपत्तियो, तथा चिंता, शोक, रोग, व्याधियो, उपाधियो, तथा कुग्रामवास, कुरूप, कुभोजन, कुपुत्र, कुस्त्री, कुसञ्जन, कुशयन, कुवाहन, कुत्रस्त्र, कुस्वर, विगेरेनी प्राप्ति, तेम ज स्वजन विरोध, बहुकन्या, दारिद्रपणं, तथा शीत ख्यान ॥ सी वात, आतप, क्षुधा, तृष्णा, इत्यादिनुं दारुण दुःख पण मनुष्योने विषे छे. व्या ॥ ८७ ॥ मा 9545 ₹ देव वेदना. क्रोध कपाथी तीव्र तपेला अने कलुषित चित्तवाला देवोने पण सुख नथी अने तेथी ज देवोने शास्त्रने विषे दुःखना कारणभूत कहेला छे, ते देखाडे छे. जे क्रोध छे ते स्वपर उभयने संताप उत्पन्न करवावालो छे. तथा माठी गतिने विषे गमन करवाना हेतुभूत छे, तेम ज प्रीतिने विच्छेद करनारो छे, माटे क्रोधने महादुःखनो हेतुभूत कहेलो छे. तथा मान जे छे, तेने अपमानना हेतुभूत कथन करेल छे, अने मानी जीवोनी पण अवज्ञा करवाना कारणभूत छे, तेम ज गुरु महाराजना विनयनो भंग करनारो छे, माटे मान पण दुःखना हेतुभूत छे. बली माया जे ते, कुविकल्पो वडे करी बीजा माणसाने दुःख देवा तथा ठगवा निमित्ते चित्तने व्याकुलपणुं उत्पन्न करे छे, माटे माया पण दुःखनी हेतुभूत छे, तथा पैसानी वृद्धि करवी, साचवणी राखवी, तथा होय न होय तेने विषे पण आडा अवळा मनना घोडा दोडाववा, तथा जीव पघातादिक पापस्थानोनुं सेवन कर अने अनार्य पापव्यापारो करवा, तेथी लोभ पण महादुःखनुं कारण छे. ते क्रोध, मान, माया अने लोभ देवताओने प्रबल होय छे, तेम ज इर्ष्या, भय, विशाद, खेद, नोकरपणु-किंकरपणुं, सेवकपणुं, केटलायेक देवोने होय छे, तथा केटलायेक देवोने किल्बिषिपणुं होय छे, तथा केटलायेक देवोने पोतानी इष्टदेवीना व्यवनथी तेना विरहनुं व्या ख्या तेर काठीयानुं र स्वरूप ॥ का क 4. रू ॥ ८७ ॥

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