Book Title: Chaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Author(s): Manivijay
Publisher: Jain Sangh Boru

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Page 167
________________ मी तो अने फुली जतो तेम ज हhi san छ, तेवामां तेने कोइके जSH पडयो, तेथी जेम वृक्षनी . में पापीये पण ते दुहार्नु अनुकरण करेलुं छे, माटे मने धिक्कार छ ! अरर ! भांड भवाया नाटकादिक चोरटाये म्हारं धर्मरूपी धन लुटी लीधुं छे. हजी पण बगडी गयु नथी, जाग्या त्यांथी सवार अने भूल्या त्यांथी फरीथी करवू, एम जाणी मिच्छा मि दुक्कडं आपी सज्ज थइ गुरु महाराज पासे धर्म सांभलवा बेठो. हवे मोहराजा सिंहासन उपर मुछोना वाळोने आमळा देतो अने फुली जतो तेमज हर्षना आवेशमा आवी जइ ठीक थयु, सारं थयु, पाप गयु, वैर वल्यु, भलु थयु, सुधरी गयु ! विगेरे प्रकारना हवाइ किल्ला उडावतो बेठो छे, तेवामां तेने कोइके जइने कह्यु के, कुतूहलने जीतीने भव्यजीव धर्म श्रवण करे छे. आ वचनो सांभलताना साथे ज मोहमहिपतिना पेटमां मोटो धासको पडयो, तेथी जेम वृक्षनी कापेली शाखा तुटी पडे, तेम सिंहासन उपरथी नीचे पडयो, मूर्छा आवी गइ, हाहाकार मची रह्यो अने तेनुं मंडल एकत्र थयु. पाणीथी, पवनथी, चंदनथी, तेने सावध कयों, एटले दीर्घ निसासो मुकी, हा हा हा, हुं हणाइ गयो. म्हारं राज्य गयुं, म्हारी प्रजा विनाश पामी, म्हारं बल घटद्यु, म्हारं मरण नजीक आव्युं, अरे! कोइ छे के, एम कहेतानी साथे तेरमो रमण काठीयो तेमना सन्मुख.हाथ जोडी खडो थइ उभो रह्यो. तेने मोह पुछवा लाग्यो के तुं क्या रखडे छे, तने म्हारा राज्य साचववानी पण परवा नथी के शु? त्यारे रमण काठीयो बोल्यो के, महाराजा! हुं हालमां इंहां तीहां क्रीडा कर्या करूं छु, अने आनंदमां फर्या | करुं छु. एटले मोहराजाये भृकूटी चडावीने कयुं के, हारे मन दीवाली छे, पण म्हारे मन होळी छे, ते तने थोडीक ज खबर | पडवानी हती, म्हारे माथे दुःखनुं वादळ घेरायुं छे, ते तो अरिहंत भगवान केवलज्ञानि मोहराजा जाणे छे. ते शिवाय बीजो कोण जाणे? अंतरनी वात जेने दाझतुं होय तेने ज कहेवाय, वीजाने कही शकाय नहि, एटले रमण काठीयो नमन yyy45)卐yyy +9卐E

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