Book Title: Chaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Author(s): Manivijay
Publisher: Jain Sangh Boru

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Page 182
________________ चौमासी व्याख्यान ॥ काठीयार्नु स्वरूप ॥ ॥ ८९॥ 5)卐yyyy होय, तथा अविरति सम्यकदृष्टि होय, तथा देशविरति होय, तथा जिनेश्वर महाराजनी पूजा करवामां, तेम ज दान देवामां रक्त होय, तथा बाल तपस्वी होय, तथा अकाम निर्जरा करनारो होय, तथा विशुद्ध परिणामी मनुष्यो, अने तिर्यच पंचेंद्रि जीवो, देवगतिना आयुष्यने बांधवाना योग्य, परिणामनी विशुद्धिवडे करी देवगतिना आयुषने उपार्जन करे छे. वली पण साधु सौधर्म देवलोक तथा सर्वार्थसिद्ध वैमान यावत् जाय छे. तथा श्रावको पण सौधर्मथी ते अच्युत बारमा देवलोक पर्यंत जाय छे. तथा व्यापन्न दर्शन मिथ्यादृष्टि लिंगधारी मुनि अभवी जेवा, यावत् ग्रैवेयक सुधी जाय छे. तथा तिर्यंच पंचेंद्रिय गुणधारी सहस्रार आठमा देवलोक सुधी जाय छे, तथा परिव्राजक आदि पांचमा ब्रह्म देवलोक सुधी जाय छे, तथा तापसो ज्योतिषीमां जाय छे. बली बाल तपस्याने विष प्रतिबद्ध थयेला, तथा उत्कृष्ट क्रोध करनारा, तथा तपकर्मवडे करी गर्वमां मग्न थयेला, तथा वैरभावने धारण करनारा, मरीने असुर कुमारने विषे जाय छे. तथा गलाफांसो खानारा, तथा विपर्नु भक्षण करनारा, तथा अग्निमां पडीने बळी मरनारा, तथा पाणिमां पडी डूबी मरनारा, तथा क्षुधातृषा वडे करी वेदना पामनारा, मरीने व्यंतराओ थाय छे, तथा अशठा, सरला श्रेष्ट विनयवाली सुस्वभावयुक्त, तथा सत्यवक्ता तथा अल्प लोभी, तथा चपलता रहित, आवा गुणोयुक्त स्त्रियो होय, ते पण मरीने पुरुषो थाय छे, जूठा कलंको चडावनार, तथा असत्यनुं भाषण करनार, तथा चंचल स्वभावी, तथा साहस कार्य करनार, तथा परने ठगनार पुरुष, मरीने स्त्रिना अवतारने पामे छे. जे क्रूर माणस, घोडा, वृषभ, पाडा, इत्यादिक जीवोना निलांछनादिक कर्मने करे छे, तथा जे माणस उत्कृष्ट मोहवालो होय | छे, ते नपुंसकपणाने पामे छे. तथा पृथ्वीकायादिक जीवोनी हिंसा करवामां रक्त, तथा परलोकने नहि माननार, तथा अति 卐

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