Book Title: Chaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Author(s): Manivijay
Publisher: Jain Sangh Boru
View full book text
________________
AyayAy卐卐gy
तरने विषे पण नथी, तेवा अनार्यने विषे उत्पन्न थाय छ, अने वली त्यां सात व्यसनादिकने सेवन करी, वली नरक तिर्यचादिकनी गतिमां दीर्घकाल सुधी रखड्या करे छे, माटे ज मानव जन्म पामनारने आर्यक्षेत्रनी प्राप्ति बहु ज दुर्लभ छे, कदाच आर्यक्षेत्रनी प्राप्ति थाय तो, श्रेष्ट कुल मलवं मुश्केल छे, भारेकर्मी जीव मानुष जन्म पाम्या छतां पण, कर्मयोगथी कोली, | नाली, चमार, चंडाल, अंत्यज, हीन जातिमा उत्पन्न थाय छे, तेम छतां पण काइक पुन्योदय होय तो, ते थकी उत्तम, वैष्णव, ब्राह्मणादिकना कुलने विषे उत्पन्न थाय छे, त्यां कुदेव, कुगुरु, कुधर्मर्नु आलंबन करी, हडहडता मिथ्यात्वनुं सेवन | करी, वली अनंत संसार रखडवावालो थाय छे, माटे तेवा कुलोमां नहि उत्पन्न थतां कदाच भाग्योदयथी सारा जैन कुलमां | जन्म पामे, तोपण निरोगी देह, अने पंचेंद्रियनु पटुपणु प्राप्त थर्बु बहु ज मुश्कल छे, कदाच पंचेंद्रियना पटुपणाने पण पामे, तोपण शुद्ध देव, गुरु, धर्म मलवा बहु ज मुशीबत छे, वीतरागदेवने छोडी रागी, द्वेषी, क्रोधी, मानी, मायी, कपटी, अनुग्रहि, निग्रहि हरि, हरब्रह्मा, भैरव, गणेश, क्षेत्रपाल, कार्तिकस्वामी, हनुमान, यक्ष, राक्षस, भूत, प्रेत, पिशाच, व्यंतर, भवानी, अंबाजी, यक्षिणी, व्यंतरी, पिशाचिनी, आशावरी, मेलडी, खोडीयार आदि देव-देवीयोनी उपासना करवावालो | थाय छे, तथा विषयी, परिग्रह, कपटी, मंत्र, तंत्र, जंत्र मारण, स्थंभन, उच्चाटन, मोहन, छेदन, भेदन, वशीकरण कामण, टुमण, ज्योतिष वैदक निमित्तादिक, पाखंडी, भगतडा, जोगीया, संन्यासी, बावा, अतित, वादि, फकीर, गारुडिक, इंद्रजालिया आदिक कुगुरुनी उपासना करे छे अने सत्यवादि सद्गुरुने निंदे छे, भंडे छे, दंडे छे, खंडे छे, वली वैश्नव, शैव, कापालिक, परिव्राजक, चक्रांकी, रोमन, पोटेस्थ, केथोलिक, बौद्ध, सांख्य, आदि अनुयायीओना धर्मनुं तेम ज वैदिक आदि महा मिथ्यावी, अने केवल,
19卐卐卐4)卐卐g:

Page Navigation
1 ... 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186