Book Title: Chaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Author(s): Manivijay
Publisher: Jain Sangh Boru

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Page 166
________________ मातेर चौमासी व्यास्पान । 卐4卐) 卐ay. 卐卐43) मन त्यां दोडयुं एटले लघुनीतिये जवु छे, तेवू बहार्नु काढी उठवा मांडधु, एटले समजु माणसोये कडं के, त्यां ते शुं जोवानुं छे. साकर, द्राक्ष अने शेलडीना रस करता मीठी मधुरी गुरु महाराजनी वाणीमां जे अमृतरसनो स्वाद छे, तेवु बहार कांइ- | काठीयार्नु पण नथी, माटे बेश! न जा, एटले बोल्यो के, केम लघुनीति करवा पण न जवा देवो के ! एम कही उठीने बहार जोवा रस्वरूप॥ | गयो. भांड भवाया नाटकादिक करता, हांसी मश्करी करता-करावता हता. बाजीगरो खेल करता हता. मोढामांथी अग्निना भडका काढी, लोढाना गोलाने छातीमा मुक्को मारी मोढेथी बहार काढी, गली जता हता, ते तथा वादियो सोने | का काढी रमत गमत करता हता. तेमां रक्त बन्यो, पग हाथ कम्मरनो दुखावो गयो ने उंघ आवती मटी गइ, भुख तरश मटी गइ, लघुनीति वडीनीति मटी गइ, सांज पडी, लोको पोतपोताने घेर चाल्या गया, ने कुतूहलमा फसेलो तेने जोइ, मोहराजा पासे कुतूहले जइ आशीर्वादपूर्वक कह्यु के, मोहराजा जयवंतो वर्तो ! भव्यजीवने भ्रष्ट करी दीधो छे. एवा समाचार कहेवाथी ते बहु ज खुशी थयो. एवामां भव्य जीवने बहु ज पश्चाताप थयो, हा हा ! हुँ महापापी छु, में मूर्खे अमृतरसनो कुंपो ढोली नाख्यो. व्याख्यान छोडी भांड भवायानी चेष्टा जोइ. में घणांना धक्का खाधा, कोणीयो खाधी, पाटुओ खाधी, घणी कदर्थना सहन करी, टाढ तडको सहन कर्यो, दहेरे उपाश्रये लगार कोइनो टल्लो वागे छे तो लडवा दोडुं छु, धिक्कार छे मने में तो एक उखाणुं साधु कयु. कयुं छे के-- पु卐434 माखी चंदन परिहरे, दुषमल उपर जाय | पापी धर्म न सांभले, उंघे के उठी जाय ॥१॥ .

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