Book Title: Chaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Author(s): Manivijay
Publisher: Jain Sangh Boru
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अने प्रेक्षकना मन मंदिरमा रतिपति मदनना रणरणाटने उत्पन्न करतीयो, कम्मरमां, अंगुलीये, बालकोने धारण करती, सुवर्ण थालमां अखंड चोखा, सोपारी, बदाम, रूपा नाणाने धारण करती अने गुरुजी पासे आवी, अखंड अक्षतनो साथीयो करी, उपर श्रीफल मुकी, गुरुने मोतीये वधावती अने कोकिलना कलकंठ समान मनोहर स्वरथी मंदमंद हास्य आनंद पूर्वक गानतान करती अने लळी लळी गुरु मुख जोती, साक्षात् देवांगना समान स्त्रियोना मंडलने जोइ, विवेक रहित थयेलो अने शोके ग्रसित करेलो जीव, व्याख्यान सांभलवू भूली जइ विचार करवा लाग्यो, हा हा हा हताश ! विधि ! आ दुनियामां तें मने कांइ सुख आप्यु नहि. आवी शशिवदनी, मृगलोचनी, गजगामिनी, सिंहलंकी, कृशोदरी, चित्तहरणी, मनमोहनी, दिलरंजनी, अपसरा समान, पत्रिणी, चित्रणी, हस्तिनी, समान मने स्त्रीतो छ ज नहि. आहा हा ! शुं तेनुं रूप, शुं तेनो देदार ! शुं तेनो ठमको! शुं तेनो रमको! शुं तेना नखरा ! शुं तेना गानतान, शुं तेना सुखो, धन्य छे! ते स्त्रियोना अने तेना भर्तारोना जन्माराने मानवपणुं तेनुं पाम्युं | पण सार्थकनुं छे. हाय हाय ! म्हारो जन्मारो तो एळे गयो, मने तो रांड भमराली, विकराली, कालजा बाळनारी, लोइ उकाळनारी, शोकाळी, काळी, कुबडी, उंचा डाचावाली, वांका मोढावाली, चीपटा नाकवाळी, पोहळा होठवाळी, चीपडावाली आंखोवाली, वींछणना पेठे डंख मारनारी, सर्पना समान वक्र गतिवाली, करकडा मोडनारी, गाळो भांडनारी, गधेडाना जेवा कंठवाळी, तंतीली, हठीली, क्रोधीली, खंधिली, जेरिली, वेरिली, खारिली, खोडेली, तेरसोने तेरे लक्षणे पूरी, रांड शंखणी मली छे. एम छतां पण संतान पण एके नथी, एम छतां पण पैसोये नथी, हा हरामी दैव ! तने धिक्कार छ । तें
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