Book Title: Chaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Author(s): Manivijay
Publisher: Jain Sangh Boru

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Page 181
________________ म समान छे, ज्ञान संसाररूपी शत्रुने नाश करवामां खड्ग समान छे, ज्ञान समग्र तत्त्वने प्रकाश करवामां तृतीय नेत्र समान छे. ज्ञान मोक्ष लक्ष्मीने वास करवामां कमल समान छे, ज्ञान कामरूपी हस्तिने मारवामां सिंहसमान छे, ज्ञान मनरूपी मच्छने सी पकडवामां जाळ समान छे, ज्ञान व्यसनरूपी मेघने दूर करवामां पवन समान छे. ज्ञान शुद्ध पदार्थो देखाडवामां दीपक क समान छे. ज्ञान विषयरूपी अग्निने शांत करवामां वारी समान छे, ज्ञान कर्मरूपी लाकडाने बालवामां अनल-अग्नि समान या छे, ज्ञानथी भावने जाणे छे. तथा सम्यकदर्शन गुणथी सहहणा वृद्धि पामे छे. चारित्रथी कर्मोंनो नाश थाय छे, तथा तप कर्म करवाथी कर्मनी शुद्धि थाय छे, अने तेथी केवल ज्ञाननी प्राप्ति थाय छे. त्यावाद आत्मा मोक्षमां जइ एकांत सुखनो ख्या भोक्ता थाय छे. वली विशेषमां जीवोने मारनार, परधन तथा परस्त्रीनो नाश करनार, चंड, महाआरंभ, महापरिग्रह आसक्त मुनि निंदा तत्पर, खराब आहारनो भक्षक, रौद्र परिणामी, मिथ्यादृष्टि जीव तंदुलीया मच्छना पेठे, दुःखदायक नरकने विषे जाय छे. तेमां पण असंज्ञिप्रथम नरके जाय छे. सरिसृपा भुजपरी बीजी नरके जाय छे, तथा पक्षीयो त्रीजी भा नरके जाय छे. तथा सिंहादिक चोथी नरके जाय छे, तथा सर्वादिक पांचमी नरके जाय छे, तथा मनुष्यनी स्त्रियो छठ्ठी डं नरके जाय छे, तथा मनुष्यो ने मच्छादिक सातमी नरके जाय छे. आ प्रमाणे उत्कृष्ट नरकने विषे उत्पत्ति कहेली छे. तथा आर्त्तध्यानने वश थयेला, तथा परने दुःख उत्पन्न करनारा, तथा बहु ज कपटीयो, तथा घणो मोह अने अज्ञानमां तत्पर रहेला जीवो मरीने तिर्यंचो थाय छे. तथा अल्पकषायी, तथा दान देवामां तत्पर उद्यमवंत, तथा क्षमा, विनय, मार्दवादिक गुणवडेकरी प्रधान, तथा दाक्षिण्यता तत्पर तथा प्रकृतिथो ज भद्रिक भावी जीवो, मरीने मनुष्यो थाय छे. जेओ महाव्रत धारीयो षां 15 ते न र स्व रू

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