Book Title: Chaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Author(s): Manivijay
Publisher: Jain Sangh Boru

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Page 177
________________ 卐493卐y सहन करवो, तेम ज क्षुधा-तृषाने सहन करवी, तेम ज शस्त्र, परोणा, आर ताजना, दोर, यष्टि मुष्टि विगेरेना मारोनुं दुःख सहन करवापणुं तथा वाहन-बहन, दोहन दाहन, अंकन छेदन भेदन, गलकर्तन, पाशबंधन, वागुराबंधन, पांजराबंधन, विगेरे, अने दुर्वचनोथी ताडना रूप, दारुण दुःखोने तिर्यचो पण दीन मनवाला थइ सहन करे छे, तेमां पण केटलुक मनुष्योये करेलु, तथा केटलुक परस्पर करेलु, तेम ज केटलुक कालादिकना भावथी उत्पन्न थयेलं, स्वयमेव तिर्यचो दुःखने वेदे छे. मनुष्य वेदना. __ मनुष्य गतिने विषे पण विष्टाने विषे पडेला कीडाना पेठे, अशूचिमय गर्भने विषे पण, अतिशय संकोचित अंगवाला जीवने घणुं दुःख तो प्रथम गर्भने विषे ज उत्पन्न थाय छे अने कह्यु छ के, अत्यंत तीक्ष्ण एवी साडात्रण कोटी सोयोने अग्निमां सखत तपावी कोइ देव मनुष्यनी समग्र रोमराजी रुंबाडामां समकाले चांपे अने तेनाथी जेटली वेदना थाय छे तेथी आठ गणी वेदना गर्भने विषे रहेला जीवने थाय छे. वली गर्भथी योनिमार्गे व्हार नीकलवाथी ते प्रसूति समये पण तीव्रवेदना थाय छे अने ते पण यंत्रमा नाखी कोइ जीवने पीलवाथी जे वेदना थाय छे, तेनाथी सोगणी अने हजारगणी वधारे थाय छे, वली बालकपणाने विषे दांत आवे त्यारे पण महादुःख उत्पन्न थाय छे, तेम ज यौवन अवस्थाने विषे पण इष्ट वस्तुना वियोगमां अने अनिष्ट वस्तुना संयोगमां पण महादुःख उत्पन्न थाय छे, वली इंद्रियोनी हानी थवाथी, तेम ज कर्मनी प्रणति प्रबल थवाथी, वृद्धा अवस्थाने विषे पण महादुःख छे अने मरण समयनी वेदनाना तीव्रदुःखोने तो ज्ञानी महाराज विना कोण जाणी शकनार छे. तथा दुःख, दौर्भाग्य, इच्छित वियोग, अर्थ नाश, मन संताप, दासत्वप', प्रेश्यपj, परसेवा yyyyyyyy)

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