Book Title: Chaumasi Vyakhyan Bhashantar Tatha Ter Kathiyanu Swarup
Author(s): Manivijay
Publisher: Jain Sangh Boru
View full book text
________________
卐yyyyy
आवी मल्या छे. आतो गमत रमतर्नु ठाम छे. वली मेदनी पण बहु ज मली छे, आ नाजुकडा देदार, अने देदीप्यमान रूपवाला मुनि महाराज पण रमकडा जेवा छे. तेमां साधन तो बधा नाटकना जेवा ज मल्या छे. सीनेरी जरीना पडदा समान चंद्रवा पूंठीया छे. सोनाना सिंहासन, सोना रूपानी ठवणी छे. हाथमां फेरववानी लगडी समान सोना रूपानुं पाठु छे. नाटक देखनाराओना पेठे आ श्रावक-श्राविका छे. एक्टरोना अंदर आ साधु महाराज छे, ते गान तानरूपे समाने रंजन करे छे. घडीकमां आक्षेपणी कथा कहे छे, घडीकमां विक्षेपणी कथा करे छे. घडीकमां संवेदिनी कथा करे छे घडीकमां | निर्वेदिनी कथा करे छे, घडीकमां विदुषकना पेठे बहु ज हसावे छे, घडीकमां शूरवीरोना पेठे शूर पण बहु चडावे छे, घडीकमां मागधी गाथाओ बोले छे, घडीकमां सुंदर संस्कृत श्लोको बोले छे, घडीकमां मजाना दुहा बोली आनंद उपजावे छे. अहाहा! शुं सुंदर कंठ, शुं मधुरी वाणी, शुं नवनवी कथाओ? शुं अवारनवार आख्यानोना टुचकाओ, आवी मजा, आq कौतुक, आई सुख? देवताओने पण दुर्लभ छे. ठीक बहु सारु आपणे तो रोजे सांभळवा आवद्यु, आपणने आq बहु गमे छे. खरुं पुछावो तो आवा व्याख्यानो ज आ जमानाना जीवोने संसारना अंदर विश्रांतिभूत छे अने तेथी ज संसारना दुःखोने वीसरी जाय छे, माटे आवी वखत आपणने सदाये मलजो अने आवा लटकाळा चटकाळा साधुओनो पण राफडो फाटजो,
के दुनिया तेना रंगरागथी सुखी थाय. आवी भावनाथी भव्य जीव भान भुल्यो, गुरु महाराजनो उपदेश एळे गयो-व्यर्थ | गयो-निष्फल थयो. हमणा तेने रगरगे-आत्माना प्रदेशे प्रदेशे रमणकाठीयो एवो व्याप्त थइ गयो के, आ उपरनी भावना विना तेने समग्र त्रिलोक शून्य भासवा मांडयुं, तेने पोताने आधिन थयेलो जोइ आनंदसागरमा डुबका मारतो रमण, मोह
卐
)
卐

Page Navigation
1 ... 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186