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statute thattentitatikattatatatashatantetottotations जैनग्रन्थरताकरे
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गोखामीजी निरे कवि ही नहीं थे, वे एक सच्चरित्र महात्मा थे।
और सज्जनोंसे भेट करना बनारसीदासजीका एक समाव था। इस लिये भी दन्तकथाओंपर विश्वास किया जा सक्ता है। ॐ यद्यपि कविवरकी जीवनी संवत् १६९८ तककी है, और उसमें
इस विषयका उल्लेख नहीं है, तो मी दन्तकथाओं में सर्वथा । तथ्य नहीं है, ऐसा नहीं कहा जा सका । एक साधारण बात समझके जीवन में उसका उल्लेख न करना भी संभव है। ___ कहते हैं कि, एकबार तुलसीदासजी बनारसीदासजीकी काव्यप्रशंसा सुनकर अपने कुछ चेलों के साथ आगरे आये तथा कविवरसे मिले। कई दिनों के समागमके पश्चात् वे अपनी बनाई हुई रामायणकी एक प्रति भेट देकर विदा हो गये। और पार्श्वनाथस्वामीकी स्तुतिमय दो तीन कवितायें जो बनारसीदासजीने मेटमें दी थी, साथमें लेते गये। इसके दो तीन वर्षके उपरान्त । जब दोनों कविश्रेष्ठोंका पुनः समागम हुआ, तब तुलसीदासजीने । रामायणक सौन्दर्य विषयमें प्रश्न किया। जिसके उचरमें ऋविवरने एक कविता उसी समय रचके सुनाई_ विराजे रामायण घटमाहि, विराजै रामायण
(धनारसीविलास पृष्ठ २४२) तुलसीदासजी इस अध्यात्मचातुर्यको देखकर बहुत प्रसन्न हुए और बोले "आपकी कविता मुझे बहुत प्रिय लगी है, मैं उसके । बदलेमें आपको क्या सुनाऊ? । उस दिन आपकी पार्श्वनाथस्तुति । पढके मैंने भी एक पार्श्वनाथस्तोत्र बनाया था, उसे आपको ही भेट करता हूं। ऐसा कहके "भक्तिविरदावली " नामक एक सुन्दर कविता कविवरको अर्पण की । कविवरको उस कवितासे
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