Book Title: Banarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 359
________________ kuttekutekutekkkkkutatukkakakakakkakettrintukattit-takikitatuteketituteketituttituita बनारसीविलासः २३९ । चेतनहो तुहूं चेतह परम पुनीत । तजहु कनक अरु कामिनि होहु नचीत ॥ ११ ॥ परेहु करमवस चेतन ज्यों नटकीस। . कोउ न तोर सहाय छाडि जगदीस ॥ १२ ॥ चेतन बूझि विचार धरहु सन्तोष । राग दोष दुइ बंधन छूटत मोप ।। १३ ॥ मोहजालमें, चेतन सब जग जानि । तुहु कुवाज तुहु वाझहु सात भुलान ॥ १४ ॥ चेतन भयेहु अचेतन संगति पाय । चकमकमें आगी देखी नहिं जाय ॥१५॥ चेतन तुहि लपटात प्रेमरस फांद। जस राखल धन तोपि विमलनिशिचांद ॥ १६ ॥ चेतन तोहि न भूल नरक दुख वास । अगनि थम तरुसरिता करवत पास ॥ १७॥ चेतन जो तुहि तिरजग जोनि फिराउ । · बांध पांच ठग वेग तोर अब दाउ ॥ १८ ॥ 2. देवजोनि सुख चेतन सुरंग बसेर । ज्यों विन नीव चौरहर खसत न वेर ॥ १९॥ चेतन नर तन पाय बोध नहिं तोहि । पुनि तुहु का गति होइहि अचरज मोहि ॥ २० ॥ आदि निगोद निकेतन चेतन तोर। भव अनेक फिरि आयेहु कतहु न ओर ॥ २१ ॥ Kakusukartiktituttitutkuktikuttitutstatutitatitutikattitutitutekukkut

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