Book Title: Banarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 368
________________ akt. kistakti Kotakuttaktituttitutekatokutiktatoketakontakutttotatukutkukk htakat ksrtatuttitutikatttt.tutetottatutoria १२४८ जैनग्रन्थरत्नाकर •mmammmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm जहँ विनय मिलि सातो सुहागनि, करत धुनि झनकार । ॐ गुरुवचनराग सिद्धान्तधुरपद, ताल अरथ विचार, सहज०||४|| ॐ श्रदहन सांची मेघमाला, दाम गर्जत घोर ।। * उपदेश वर्षा अति मनोहर, भविक चातक मोर ॥ ॐ अनुभूति दामनि दमक दीसै, शील शीत समीर ।। * तप भेद तपत उछेद परगट, भावरंगत चीर, सहज० ॥५॥ कबहूं असंख प्रदेश पूरन, करत वस्तु समाल । कवहूं विचारै कर्म प्रकृती, एकसौ अड़ताल ॥ कवहूं अबंध अदीन अशरन, लखत आपहि आप। * कवहूं निरंजन नाथ मानत, करत सुमरन जाप, सहज०॥६॥ कबहूं गुनी गुन एक जानत, नियत नय निरधार । कवहूं सुकरता करम किरिया, कहत विधि व्यवहार ।। कबहू अनादि अनंत चिंतित, कबहुं करहि उपाधि । कबहूं सु आतम गुणसँभारत, कबहुं सिद्ध समाधि, सहज० ॥७॥ इहिभांति सहज हिंडोल झूलत, करत आतम काज । भवतरनतारन दुखनिवारन, सकल मुनिसिरताज ॥ जो नर विचच्छन सदयलच्छन, करत ज्ञानविलास। भुकरजोर भगति विशेष विधिसौं, नमत काशीदास ॥ ८ ॥ इति परमाथहिंडोलना। tituttit.ukkkkkkkkkkkkkk.k.kut.kkk.kritut.kuttitutikattat.tituttt.ttituti + + + + + + + + + + + + + + + + + + + + + +

Loading...

Page Navigation
1 ... 366 367 368 369 370 371 372 373