Book Title: Banarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 337
________________ 14 . 4 + + NARTHI +++ +++ बनारसीविलासः २ पनौं कार्य नाही मानतौ संतौ जोगद्वारकरि अपने खरूपको । ध्यान विचाररूप क्रिया करतु है, ता कार्य करतौ मिश्र व्यवहारी कहिए. केवलज्ञानी यथाख्यातचारित्रके वलकरि । शुद्धात्मस्वरूपको स्मनशील है तातै शुद्धव्यवहारी कहिए. जोगारूद्ध अवस्था विद्यमान है तातै व्यवहारी नाम कहिए ।। शुद्धव्यवहारकी सरहद्द त्रयोदशम गुनस्थाकसौं लेइकरि चतुतु देशम गुनस्थानकपर्यंत जाननी । असिद्धत्वपरिणमनत्वात् । व्यबहारः। अथ तीनहूं व्यवहारको स्वरूप कह है* शुद्ध न्यबहार शुभाशुभाचाररूप, शुद्धाशुद्धव्यवहार शुभोपयोगमिश्रित स्वरूपाचरनरूप, शुद्धव्यवहार शुद्धस्वरूपाचरनरूप। परन्तु विशेष इनको इतनौ जुकोऊ कहै कि-शुद्धस्वरूपाचरणाम तौ सिद्भविष छतौ है. उहां भी व्यवहार संज्ञा कहिए-सो ौं नाही-जाते संसारी अवस्थापर्यन्त व्यवहार कहिए । संसारावस्थाके मिटत व्यवहार भी मिटी कहिए। * इहां यह थापना कीनी है तातै सिद्धव्यवहारातीत कहिए। इति व्यवहारविचार समातः। अथ आगमभध्यातमको स्वरूप कथ्यते । आगम-वस्तुको जु स्वभाव सो आगम कहिए । आत्माको जु अधिकार सो अध्यातम कहिए । आगम तथा अध्यात्म स्वरूप भाव आत्मद्रव्यके जानने । ते दोऊभाव संसार - वस्थाविषै त्रिकालवर्ती मानने । ताको ब्यौरौ--आगमरूप ।

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