Book Title: Banarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 341
________________ Pittsttattatistatistatstatiststatestasttitual ____बनारसीविलासः २२१ । तू कहा कहतु है अथवा चुप है रहै बोले नाही गहलरूपसौं ।।। भी तीसरो पुरुष विश्रमवालो बोल्यो कि यह तो - ३त्यक्षप्रमान रूपो है याको सीप कौन कहै मेरी दृष्टिविषै तौ । १ सयो सूझनु है तातें सर्वथाप्रकार यह रूपो है १ सौ तीनों पुरुष तौ चा सीपको स्वरूप जान्यौ नाहीं । तातै तीनों मिथ्यावादी । अब चौथी पुरुष बोल्यो कि यह तो प्रत्यक्ष प्रमान । सीपको खंड है यामैं कहा घोरखो,सीप सीप सीप, निरधार सीप याको जु कोई और वस्तु कहै सो प्रत्यक्षपमान प्रामक अथवा । अंघ. तैसें सम्यग्दृष्टीकौ स्वपरस्वरूपविधै न संसै न विमोह । सन विक्रम यथार्थ दृष्टि है ता सम्यादृष्टी जीव अन्तरदृष्टि करि का मोक्षपद्धति साथि जाने । बाह्यभाव वानिमितरूप मान, सो निमित्त नानारूप, एक रूप नाही. अन्तरदृष्टिक प्रमान मो* क्षमार्ग साथै. सम्यग्ज्ञान स्वरूपाचरनकी कनिका जागे मोक्षमार्ग सांचौ । मोक्षमार्गको साधियो यहै व्यवहार, शुद्धद्रव्य । प्रक्रियारूप सो निश्चै । पैसें निश्चय व्यहारको स्वरूप सम्यदृष्टी जाने. सूट जीव न जाने न मानै । मूढ जीव बंधपद्धति को साधिकार मोक्ष कहै, सो वात ज्ञाता माने नाहीं । काहेते ।। यात जु बंधके साधते बंध सधै, मोक्ष सथै नाहीं । ज्ञाता। जब कदाचित बंधपद्धति विचारै तब जाने कि या पद्धतिसौं । मेरो द्रव्य अनादिको बन्धरूप चल्यो आयो है-अव या पद्धतिसौं मोह तौरि बहै तौ या पद्धतिको राग पूर्वकी त्यों है ।

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