Book Title: Banarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 370
________________ tittttrintitetintrittstatititittitetstritt Huktrkutrkutrkutekakakrkuttakikutiktatkirtuktaketikotukkakikattatramkutekukatokitrkutkika * २५० जैनग्रन्थरताकरे तीननये पद जो हमने संग्रह किये हैं. नयापद १ ला मूलन, वेटा जायोरे साधो, भूलन० जाने खोजकुटुंब सब खायो रे साघो० मूलन० ॥ टेक ॥ जन्मत माता ममता खाई, मोहलोभ दोइ भाई । कामक्रोध दोइ काका खाये, खाई तृषनादाई, साधो० ॥ १ ॥ पापीपापपरोसी खायो, अशुभकरम दोइ मामा । मान नगरको राजा खायो, फैल परोसनगामा, साधो० ॥ २ ॥ दुरमति दादी ""दादो, मुखदेखत ही मूओ । मंगलाचार वधाये वाजे, जब यो बालक हूओ, साधो० ॥ ३॥ नाम धरचो बालकको सूत्रो, रूप वरन कछु नाहीं । नामघरते पांडे खाये, कहत वनारसि । भाई, साघो० ॥१॥ नयापद २रा राग जंगला. वा दिनको कर सोचजिय! मनमें | वा दि० टेक।। वनज किया व्यापारी तूने, टांडा लादा भारीरे । ओछी पूंजी जुआ खेला, आखिर वाजी हारीरे। आखिर बाजी हारी, करले हुचलनेकी तय्यारी । इकदिन डेरा होयगा वनमें, वादिन० ॥१॥ झूठे नैना उलफत वांधी, किसका सोना किसकी चांदी। इकदिन । हे यवन चलेगी आंधी, किसकी वीवी किसकी बांदी, नाहक चित्त लगावै घनमें, वादिनः ॥ २ ॥ मिट्टीसेती मिट्टी मिलियौ, इस रागके पदक्रमोंको हम समझ नहीं सके। लल्लललललललल Sankrtetituticketertaikakrtikakukkakakakakntitatukuntukrikakunketitukatutekatuntrtant UYE कलकलन

Loading...

Page Navigation
1 ... 368 369 370 371 372 373