Book Title: Banarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 312
________________ २१९२ जैनग्रन्थरत्नाकरे Stottostutiktatutekrtikattatutixcketkutukkukukukratikuktakkkkkkattikatta बौद्धमत । देव बुद्ध गुरु पाधड़ी, जगत वस्तु छिन औष। शून्यवाद आगम भजे, चारवाक मत वौध ॥ ३ ॥ वेदान्तमत्त । देव ब्रह्म अद्वैत जग, गुरु वैरागी भेष। ' वेद ग्रन्थ निश्चय धरम, मत वेदान्तविशेष ॥ ४ ॥ न्यायमत। देव जगतकरता पुरुष, गुरु सन्यासी होय । न्याय ग्रन्थ उद्यम घरम, नैयायिक मत सोय ॥ ५ ॥ मीमासकमत। देव अलख दरवेश गुरु, मार्ने कर्म गिरंथ । धर्म पूर्वकृतफलउदय, यह मीमांसक पंथ ॥ ६॥ जैनमत। देव तीर्थकर गुरु यती, आगम केवलि वैन । धर्म अनन्त नयातमक, जो जानै सो जैन ॥ ७ ॥ ए छहमत छै भेदसों, भये छूट कछु और। १ प्रतिषोडस पाखंडसों, दशा छ्यानवे और ॥ ८॥ ___ इति षट्दर्शनाष्टक. ykitatutiktatttitutekstuttituttituttt.ttitutkRRitutistkrtiket.ttiktatutikatta अथ चातुर्वर्ण लिख्यते. जो निश्चय मारग गहै, रहै ब्रह्म गुणलीन । ब्रह्मदृष्टि सुख अनुभवै, सो ब्राह्मणः परवीन ॥ १ ॥ + + T + 14+ +

Loading...

Page Navigation
1 ... 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373