Book Title: Banarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 308
________________ १८८ जैनग्रन्थरत्नाकरे । AAAAAAAAme प्रश्न-शब्द अगोचर वस्तु है, कछू कहौं अनुमान । ____ जैसी गुरु आगम कही, तैसी कहौ लुजान ॥ ७॥ उत्तर-शब्द अगोचर कहत है, शब्दमाहिं पुनि सोय।। स्यादवाद शैली अगम, विरला बुझै कोय ॥ ८ ॥ प्रश्न-वह अरूप है रूपमें, दुरिकै कियो दुराव। जैसें पावक काठमें, प्रगटे होत लखाव ॥ ९॥ उत्तर-हुतो प्रगट फिर गुपतमय, यह तो ऐसो नाहिं। है अनादि ज्यों खानिमें, कंचन पाहनमाहि ॥१०॥ इति प्रश्नोत्तर दोहा. tattitutkukkuttitutiktattattatrk.ki.kkkakkaktetek ketkirtutvkottttituttitute अथ प्रश्नोत्तरमाला लिख्यते. नमत शीस गोबिन्दसों, उद्धव पूछत एम ।। __ कै विधि यम कै विधि नियम, कहो यथावत जेम॥१॥ समता कैसी दम कहा, कहा तितिक्षा भाव ___ धीरज दान जु तप कहा, कहा सुभट विवसाव ॥२॥ कहा सत्यरति है कहा, शौच त्याग धन इष्ट । ___यज्ञ दक्षिणा वलि कहा, कहा दया उतकि कहा लाभ विद्या कहा, लज्जा लक्ष्मी गूढ । * सुख अरु दुख दोऊ कहा, को पंडित को मूढ ॥४॥ पंथ कुपंथ कहो कहा, वर्ग नरक चिंतौन । ___ को बंधव अरु गृह कहा, धनी दरिद्री कौन ॥ ५ ॥ WAPMREPPERPEPER titutituttituat.krit-tituttituirtikkukunkumkuttastiikutankutickekutrkut.kutitutnkuthtm

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