Book Title: Banarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 351
________________ बनारसीविलासः २३१॥ - उपादान वल जहँ तहाँ, नहिं निमित्तको दाव। एक चक्रसौं रथः चलै, रविको यहै खभाव ॥ ५ ॥ * सधै वस्तु असहाय जहँ, तहँ निमित्त है कोन । । ज्यों जहान परवाहमें, तिरै सहज विन पौन ॥ ६॥ ॐ उपादान विधि निरवचन, है निमित्त उपदेस। बसै जु जैसे देशमें, करै सु तैसे मेस ॥ ७ ॥ इति निमित्त उपादानके दोहे. ' अथ अध्यातमपदपंक्ति लिख्यते. kuttituattrakankskskkkkkukkuteketst.titutkatxtet-tattitutekettituttitukuttta kuter Akanketitutituttttituttitutnteautittent.tituttitutisextitutitutiktatinki __राग भैरव या चेतनकी सब सुधि गई। .. व्यापन मोहि.विकलता भई, या चेतनकी टेक है.बडरूप अपावन देह। तासौं राखै परमसनेह, या चेतनकी० ॥ १ ॥ आइ मिले जन स्वास्थबंध । । तिनहिं कुटंब कहै जा बंध ॥ आप अकेला जनमै मरे। — सकल लोककी ममता धरै, या चेतनकी० ॥ २ ॥ इस रागमसे टेक निकाल दी वाले तो खासी १५ मात्राकी चौपाई हो जाती है। - -

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