Book Title: Banarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 353
________________ Stattattk.tuttst.tattattatutetst.tattatokkke बनारसीविलासः २३३ waaaaaamwanam kuttatutikatutetntroketaketakiktatute totketitutikkrt.ttttttituticketek.kekuttitute (३). राग रामकली। * मगन लै आराघो साघो! अलख पुरुष प्रभु ऐसा ॥ टेक॥ जहाँ जहाँ जिस रससौं राचे, तहाँ तहाँ तिस भेसा,मगन० ॥१॥ * सहजप्रवान प्रवान रूपमें, संसैमें संसैसा । घरै चपलता चपल कहावै, लै विधानमें लै सा, मगन० ॥ २ - उद्यम करत उद्यमी कहिये, उदयसरूप उदै सा। व्यवहारी व्यवहार करममें, निहमें निहचै सा, मगन० ॥३॥ । पूरण दशा धेरै संपूरण, नय विचारमें तैसा । इंदरवित सदा अखै सुखसागर,भावित उतपति खैसा, मगन०४॥ नाहीं कहत होइ नाही सा, है कहिये तो है सा। एक अनेक रूप है वरता, कहाँ कहाँ लों कैसा, मगन० ॥५॥ ॐ वह अपार ज्यों रतन अमोलक, बुधि विवेक ज्यों पैसा। कल्पित वचन विलास वनारसि' वह जैसेका तैसा,मगन०॥६॥ दोहाजिनप्रतिमा जिनसारखी, कही जिनागम माहिं । पै जाके दूषण लगै, बंदनीक सो नाहिं ॥ १ ॥ मेटी मुद्रा अवधिसों, कुमती कियो कुदेव । विधन अंग जिनबिंबकी, तजै समकिती सेव ॥२॥ How

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