Book Title: Banarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 324
________________ 4.44 MALAMICA 44444 ALMAMATALABALI anamamale Riktut.kirtatukk-kuttattrakuttekuttikontakkukkukkukkukutekkkkkkkkkakti १२०४ जैनग्रन्थरलाकरे काल असिघारा जिन जगत बनाए सोई, . ___ कामिनी कनक मुद्रा दुहुँको बनारसी ॥ दोऊ विनाशी सदीव तूहै अविनाशीजीव, __ था जगत कूपवीच ये ही ढोबनारसी। इनको तू संगत्याग कूपों निकसि भाग, __प्राणी मेरे कहे लाग कहत वनारसी ॥ ४ ॥ (पादान्तयमफ). जीवके बधैया वामविद्याके सधैया दावा, ___ नलके दधैया बन आखेटक करमी। जुआरी लबार परघनके हरनहार, ' . ___ चौरीके करनहार दारीके अशरमी।। मांसके भलैया सुरापानके चखैया, ___ परवधूके लखैया जिनके हिये न नरमी । रोषके गहैया परदोषके कहैया येते, पापी नर नीच निरदै महा अघरमी ॥ ५॥ सतगयन्द । सम्यक ज्ञान नहीं उर अन्तर, कीरतिकारण भेष बनावें । मौन तो वनवास गहें मुख, मौन रहें तपसों तन जावें ॥ जोग अजोग कछू न विचारत, मूरख लोगनको भरमावें। फैल करें बहु जैन कथा कहि, जैन विना नर जैन कहावें ॥६॥ 9 भाईबंधु दारासुत कुटुंबकें लोक सब, . ॐ इनके ममत्वको तू त्यागरे बनारसी। Kt.tattitutikattitut-ttttt.titutituttituttitutxt.kuttituttitutetext.ttituttituter -

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