Book Title: Banarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay
View full book text
________________
wwwmummmmmmm
tokattutterstt.tttttttti.tattatukata
बनारसीविलासः २४३ । मूरख मानै नाहिं, विराजे रामायण ॥१॥आतम राम ज्ञान
गुन लछमन सीता सुमति समेत । शुभपयोग वानरदल ॐ मंडित, वर विवेक रणखेत, विराजे० ॥ २ ॥ ध्यान धनुप
टंकार शोर सुनि, गई विषयदिति माग । भई भस्म मिथ्यामत लंका उठी धारणा आग, विराजै० ॥ ३ ॥ जरे अज्ञान ।। भाव राक्षसकुल, लरे निकांछित सूर । जूझे रागद्वेष सेनापति संसै गढ चकचूर, विराजे० ॥४॥ विलखत कुंभकरण :
भवविभ्रम, पुलकित मन दरयाव । थकित उदार वीर महि* रावण, सेतुबंध समभाव, विराबै० ॥ ५ ॥ मूर्छित मंदोदरी दुराशां, सजग चरैन हनुमान । घटी चतुर्गति परगति सेना, छुटे छपकगुण वान, विराजे० ॥ ६ ॥ निरखि सकति गुन चक्रमुदर्शन उदय विभीषण दीन । फिरै कबंध मही रावणकी, प्राणभाव शिरहीन, विराजे०
॥ ७ ॥ इह विधि सकल साधुघटअंतर, होय सहज सं*ग्राम, यह विवहारदृष्टि रामायण, केवल निश्चय राम,
विराजै० ॥ ८॥
utatutetitutiktutekutt-kokanikuttkrtikottotokutekakakakirtituttitutkuktakikikikikatta
Stukkutatutkukuttitutituttitutituttitutkukkuttacket.titutkrtstakkaketutix.kuttakaka
भालाप, दोहा। जो दातार दयाल है, देय दीनको भीख । त्यों गुरु कोमल भावसौं, कहै मूढको सीख ॥ १ ॥ १ सूर्पनखा राक्षसी. २ सम्यक्चारित्र,

Page Navigation
1 ... 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373