Book Title: Banarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay
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Satstatutstattatet tatat.tattatuttitutetst.tattatraye ३२४० जैनग्रन्थरलाकरे
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विषय महारस चेतन विष समतल, ___ छाडहु बेगि विचारि पापतरुमूल ॥ २२ ॥ गरभवास तुहुं चेतन ऊरध पांव,
सो दुख देख विचार धरमचित लाव ॥ २३ ॥ चेतन यह भवसागर धरम जिहाज,
तिह चढ बैठो छोड लोककी लाज ॥ २४ ॥ दह या दुहु अब चेतन होहु उचाट,
कह या जाउ मुकतिपुरि संजम वाट ॥ २५ ॥ उधवागाय सुनायेहु चेतन चेत, ___ कहत बनारसि थान नरोत्तम हेत ॥ २६ ॥
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राग धनाश्री। चेतन उलटी चाल चले, जडसंगततै जड़ता व्यापी निज ॐगुन सकल टले, चेतन० टेक ॥ १ ॥ हितों विरचि
ठगनिसों राचे, मोह पिसाच छले । हँसि हँसि फंद सवारि आपही, मेलत आप गले, चेतन० ॥ २॥ आये निकसि निगोद में सिंधुतें, फिर तिह पंथ टले । कैसे परगट होय आग जो दची पहारतले, चेतन ॥ ३॥ भूले भवभ्रम वीचि वनारसि तुम सुरज्ञान मले । धर शुभध्यान ज्ञाननौका चदि, बैठे ते निकले, चेतन० ॥ ४ ॥
(१२)
पुनः राग धनाश्री। चेतन तोहि न नेक संभार, नख सिखलों दिढबंधन बेढे ।
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