Book Title: Banarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 338
________________ attattitut-tttttt.tttttt.ttituttitutotrkutkukkuteket-tuteketaket.titutttkian ytht.ket.tituttitutatutetertatutattitutetstatuttitun १२१८ जैनग्रन्थरत्नाकरे कर्मपद्धति, अध्यात्मरूप शुद्धचेतनापद्धति । ताको व्यौरीकर्मपद्धति पौद्लीकद्रव्यरूप अथवा भावरूप, द्रव्यरूप पुद्गलपरिणाम, भावरूप पुद्गलाकारआत्माकी अशुद्धपरिणतिरूप पारिणाम-ते दोऊपरिणाम आगमरूप थापे । अब शुद्धचेतनापद्धति शुद्धात्मपरिणाम सो भी द्रव्यरूप अथवा भावरूप । द्रव्यरूप तौ जीवत्वपरिणाम-भावरूप ज्ञानदअर्शन सुखवीर्य आदि अनन्तगुणपरिणाम, ते दोऊ परिणाम अध्यात्मरूप जानने । आगम अध्यात्म दुई पद्धतिविप अनन्तता माननी। अनन्तता कहा ताको विचार__ अनंतताको स्वरूप दृष्टान्तकरि दिखाइयतु है जैसेवटवृक्षको बीज एक हाथविषै लीजै. ताको विचार दीर्घ दृष्टिसौं कीजै तो वा वटके वीजविषै एक वटको वृक्ष है.. सो वृक्ष जैसो कछु भाविकाल होनहार है तैसो विस्तारलिये विद्यमान वामैं वास्तवरूप छतो है. अनेक शाखा प्रशाखा पत्र पुष्पफलसंयुक्त है फल फलविषै अनेक वीज होंहि । या । शुभांतिकी अवस्था एक वटके बीजविषै विचारिए । भी और है सूक्ष्मदृष्टि दीजै तो जे जे बा वट वृक्षविष वीज हैं ते ते । अंतगर्मित वटवृक्षसंयुक्त होहिं । याहीभांति एकवटविषे अनेक अनेक बीज, एक एक बीज विषै एक एक वट, ताको विचार है। * कीजै तौ भाविनयप्रवानकरि न वटवृक्षनिकी मर्यादा पाइए। k.tukarketituttitutixt.int.ttitut.titutekrt.k.xxkrkut.kit-X-kutitutikattakitrint-kkuta

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