Book Title: Banarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 369
________________ itst.tattitutistitutstatiststatistitutiotst.tter वनारसीविलासः wwwwwwwww kutitutkutekstatitutkuttitutitutekatate.kettrakokatratikatttttttttta अथ मलार तथा सोरठ राग। देखो माई ! महाविकल संसारी, दुखित अनादि मोहक कारन, राग द्वेप भ्रम मारी, देखो भाई महाविकल संसारी ॥१॥ हिंसारंभ करत सुख समुझै, मृपा वोलि चतुराई । परधन हरत । असमर्थ कहावे, परिग्रह बढत बडाई, देखो माई० ॥ २ ॥ वचन । राख काया दृढ राखें, मिटै न मनचपलाई । यात होत औरकी और, शुभ करनी दुखदाई, देखो भाई० ॥ ३ ॥ जोगासन करि कर्म निरोध, आतम दृष्टि न जाग । कथनी कथत महंत कहावै, ममता मूल न त्यागै, देखो भाई० ॥ ४ ॥आगम वेद सिद्धान्त पाठ सुनि, हिये आठमद आने । जाति लाभ कुल वल तप विद्या, प्रमुता रूप बखान, देखो भाई० ॥ ५ ॥ जडसौं राचि परमपद साथै, आतमशक्ति न सूझै । विना विवेक विचार दरवके, गुण परजाय न झै, देखो० ॥ ६ ॥ जसवाले जस सुनि संतो, तप वाले तन सोएँ । गुनवाले । परगुनको दोपैं, मतवाले मत पोपैं, देखो० ॥ ७ ॥ गुरु ॐ उपदेश सहज उदयागति, मोहविकलता छूटै । कहत वनारसि है करुनारसि, अलख अखय निधि लटै, देखो० ॥८॥ इत्यष्टपदी मल्हार सम्पूर्ण। kot.kak. keks krt.kkkakaktetakakakakikika YY १ सुखदाई ऐसा भी पाठ है ar

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