Book Title: Aram Nandan Katha Author(s): Gautamvijay Publisher: Jain Sangh Boru View full book textPage 3
________________ श्री पार्श्वनाथाय नमः। परमपूज्य मुनिमहाराजश्री कनकविजयजी महाराजनुं टुंक जीवन वृत्तांत आ जगतमां अनेक आत्माओ जन्मे छे अने मरे छे तेमां कांइ नवाइ नथी अने ते आत्माओने जगत याद पण करतुं नथी. किन्तु मानवोमां पण केटलाक एवा विशिष्ट कोटीना आत्माओ होय छे के जेना नाम शेष थया बाट पण आ जगत चिरकाल सुधी संभारे छे. ते पण तेओना पुन्यने अने तेमा रहेला अद्भूत गुणोनेज आभारी छे. खरेखर ते आत्माओज आ अणमोल मानव जीवनने सफल बनावे छे. तेवा गुणी जीवो सदृश आ पण एक आदर्श महात्मा हता. ते पूज्य पुरुषनो जन्मकाल संवत १९०८ना भादरवा शुदि १ ने दिवसे.मदेशाणा पत्तनमां थयो हतो. तेओर्नु छबीलदास एव॒ नाम राख्यु हतु, त्यार बाद युवान वय थतां २० वर्ष लगभग मुंबइ जेवा शहेरमा यो उद्योग करतां पूज्य मुनि महाराज श्री देवविजयजी महाराजनो समागम थतां तेओश्रीनी वैराग्यवाहीनि देशना श्रवण करतां तेमने वैराग्य थयो. अमदावाद आव्या अने त्यार बाद संवत १९४३ ना कारतक वदी ६ ने दिवसे श्रीमद् भागवती प्रव्रज्या अंगीकार करी अने तेस्रोश्रीन 'कनकविजयजी' एवं नाम राखवामां आव्यु. त्यारबाद गुरुजीना साथे केटलोक समय विचर्या बाद गुरुजी काळधर्म पाम्या त्यारबाद पण वर्षो सुधी गुर्जर-सौराष्ट्र-कच्छ, मरुधर, मालवा इत्यादि अनेक देशोमां विचरी अनेक भव्यात्माओने सदुपदेश द्वारा प्रतिबोध करी धर्ममार्गे जोड्या हता तेवीज रीते मने पण ते पूज्यPage Navigation
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