Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 38
________________ आनंदघनजी कृत पद. श्‍ ॥ २ ॥ सास विसास उसास न राखे, निपद- निगो जोर तरीरी ॥ और तबीब न तपत बुफावत, आनंद घन पीयूषऊरी री ॥ पिया० ॥ ३ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद अडतालीशमुं ॥ राग मारु, जंगलो ॥ ॥ मायडी मुने निरपख किाही न मूकी ॥ निर पख० ॥ माय० ॥ निरपख रहेवा घणुंही फूरी, धीमे निजमति फूकी ॥ माय ॥ १ ॥ योगीयें मलीने योगा कीनी, यतियें कीनी यतणी ॥ जगतें पकडी जगताली कीनी, मतवाले कीनी मतणी ॥ माय ॥ २॥ केणे मूकी के जूंची, केणे केसें लपेटी ॥ एकपखो में कोई न देख्यो, वेदना किाही न मेटीं ॥ माय० ॥ ३॥ राम न ए रहीमान नपाई, अरिहंत पाठ पढाई ॥ घरघरने ढुं धंधे वलगी, अजगी जीव सगाई ॥ माय ॥ ४ ॥ केणे ते थापी के नथापी, केणे चलावी कि रा रखी ॥ केणे जगाडी केणे सूखाडी, कोईनुं कोई नयी साख ॥ माय० ॥ ५ ॥ धींग दुर्बलने ठेलीजें, गंगे वींगो वाजे ॥ अबला ते केम बोली शकियें, वड योधाने राजे ॥ माय० ॥ ६ ॥ जे जे कीधुं जे जे कराव्युं, तेह कहेती हूं. लाजुं ॥ थोडे कहे घणुं प्रीटी लेजो, घरगुं तीरथ नहीं बीजुं ॥ माय० ॥ ७ ॥ चाप वीती कहेतां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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