Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 105
________________ एश् चिदानंदजी कृत पद. जन आश ॥ पूरण दृष्टि निहालीयें, चित्त धरिये हो अमची अरदास ॥ परमा० ॥ १ ॥ सर्व देश घाती सदु,अघाती हो करी घात दयाल ॥ वास कीयो शिव मंदिरें, मोहे वीसरी हो जमतो जग जाल ॥ परमा० ॥ २ ॥ जग तारक पदवी सही, तास्या सही हो अ पराधी अपार ॥ तात कहो मोहे तारतो, किम की नी हो इणे अवसर वार ॥ परमा॥३॥ मोहमहा मद बाकथी, ढुंबकीयो हो नांहि सूध लगार ॥ तु चित सही णे अवसरें, सेवकनी हो करवी संजाल॥ परमा० ॥ ४ ॥ मोह गयां जो तारशो, तिणवेला हो कहा तुम नपगार ॥ सुख वेला सऊन घणां, सुख वेला हो विरला संसार ॥ परमा ॥ ५॥ पण तुम दरिसन जोगथी, थयो हृदयें हो अनुभव परकाश ॥ अनुनव अन्यासी करे, उःखदायी हो सदु कर्म विना श ॥ परमा० ॥ ६॥ कर्मकलंक निवारीने, निजरू पें हो रमे रमता राम ॥ लहत अपूरव नावथी,श्ण रीतें हो तुम पद विश्राम ॥ प० ॥ ॥त्रिकरण जोगें वीन, सुखदायो दो शिवादेवी नंद ॥.चिदानंद मनमें सदा, तुमे आपो हो प्रनु नाण दिणंद ॥ परमा॥॥ ' Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114