Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 81
________________ ६८ चिदानंदजी कृत पद. लगत बगासा ॥ चिदानंद सोही जन उत्तम, काप त याका पासा ॥ संतो० ॥ ४ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद एकवीरामुं ॥ राग धन्याश्री ॥ ॥ कर ले. गुरुगम ज्ञान विचारा || कर ले० ॥ ए यांकली ॥ नाम अध्यातम ठवण इव्यथी, नाव य ध्यातम न्यारा ॥ कर० ॥ १ ॥ एक बुंद जलथी ए प्रगटया, श्रुत सायर विस्तारा ॥ धन्य जिनोनें उलट न दधिकूं, एक बुंदमें मारा ॥ कर० ॥ २ ॥ बीज रुची धर ममता परिहर, नही यागम अनुसारा ॥ परपख श्री लस्ट इविध अप्पा, यहिकंचुक जिम न्यारा ॥ ॥ कर० ॥ ३ ॥ नास परत जम नासहु तासढु, मि य्या जगत पसारा ॥ चिदानंद चित्त होत अचल २ म, जिम नन धूका तारा ॥ कर० ॥ ४ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद बावीशमं ॥ राग धन्याश्री ॥ ॥ अब हम ऐसी मनमें जाली ॥ ० ॥ ए यां कणी ॥ परमारथ पथ समज विना नर, वेद पुराण क हाणी ॥ अ० ॥ १ ॥ अंतरल विगत उपरथी, क ष्ट करत बहु प्राणी ॥ कोटि यतन कर तूप लहत न हिं, मयतां निशिदिन पाणी ॥ अ० ॥ ३ ॥ लवण पूतली याह लेणकूं, सायरमांहि समाणी ॥ तामें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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