Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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आनंदघनजी कृत पद. २ए घर जाय ॥ पूरवदिसि पलिम दिसि रातडो, रवि अ स्तंगत थाय ॥ बा ॥ १ ॥ पूनम ससी सम चेतन जाणीयें, चंशतप सम जाण ॥ वादल नर जिम दल थिति आणीये,प्रकृति अनावृत जाण ॥ बा० ॥ २ ॥ परघर जमतां स्वाद किशो लहे, तन धन यौवन हा ए ॥ दिन दिन दीसे अपयश वाधतो, निज जन न माने कांण ॥ बा ॥३॥ कुलवट बांमी अवट कवट पडे,मन मेहूवाने घाट ॥ आंधो आंधे मिले बे जण, कोण देखाडे वाट ॥ बा॥४॥ बंधु विवेकें पीनडो बूजव्यो, वास्यो परघर संग ॥ आनंदघन समताघर आणे, वाधे नव नव रंग ॥ बा० ॥ ५॥ इति पदं ॥
॥ पद सत्तावनमुं ॥राग आशावरी ॥ ॥ देखो एक अपूरव खेला, आपही बाजी आप ही बाजीगर, थाप गुरु आप चेला । देखो॥१॥ लोक अलोक बिच आप बिराजित, ग्यान प्रकाश अकेला ॥ बाजी गंम तहां चढ बैठे, जिहां सिंधुका मेला ॥ देखो ॥२॥ वाग्वाद खटनाद सढुमें, किसके किसकें बोला॥पाहाणको नार कांही उठावत,एक तारें का.चोला ॥ देखो॥३॥षटपद पदके जोगसिरिखस,
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