Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 71
________________ एज चिदानंदजी कृत पद. कुसुम संग, देह संग तेम जीव ॥ सु॥२॥ रहत दुताशन काष्ठमें रे, प्रगटे कारण पाय ॥ लही कारण कारजता प्यारे, सहेजें सिदि थाय ॥ सु॥३॥ खीर नीरकी निन्नता रे, जैसें करत मराल ॥ तैसें नेद ज्ञा नी लह्यां प्यारे, कटे कर्मकी जाल । सु० ॥४॥ अज कुलवासी केहरी रे, लेख्यो जिम निजरूप ॥ चिदा नंद तिम तुमहू प्यारे, अनुनव शुक्ष स्वरूप ॥ सु॥५॥ ॥ पद चोथु ॥ राग मारु॥ .. ॥ बंध निज श्राप उदीरत रे, अजा कृपाणी न्या य ॥ बंध० ॥ ए आंकणी ॥ जकज्यां किणें तोहैं सांकलां रे, पकड्या किणे तुव हाथ ॥ कोण नूपके पहरुये प्यारे, रहत तिहारे साथ ॥ बंध ॥ १ ॥ बांदर जिम मदिरा पोये रे, वीलू अंकित गात ॥ जूत लगे कौतुक करे प्यारे, तिम चमको उतपात ॥ बंध० ॥ २ ॥ कीर बंध्या जिम देखीयें रे, नलिनी चमर संयोग ।। णविध नया जीवकू प्यारे, बंधन रूपी रोग ॥ बंध० ॥३॥ नम आरोपित बंधथी रे, परपरिणति संग एम ॥ परवशता कुःख पावते प्यारे, मर्कट मूठी जेम ॥ बंध० ॥ ४ ॥ मोह दशा अलगी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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