Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 76
________________ चिदानंदजी कृत पद. ६३ शिर धारकें, कोन कान फरावे ॥ जो ॥३॥ ऊर्ध्व बादु अधोमुखें, तन ताप तपावे ॥ चिदानंद समज्या विना, गिणती नवि आवे ॥ जो ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥पद बारमुं ॥ राग वेलावल ॥ ॥आज सखी मेरे वालमा, निज मंदिर आये ॥ अति आनंद हिये धरी, हसी कंठ लगाये ॥ आ॥ ॥१॥ सहज स्वभाव जलें करी,रुचि धर नवराये ॥ थाल जरी गुण सुखडी, निज हाथ जिमाये ॥ आ॥ ॥ २॥ सुरनि अनुजव रस नरी, बीडा खवराये ॥ चिदानंद मिल दंपती, मनोवंबित पाये ॥ आ॥३॥ ॥पद तेरमुं ॥ रागं विनास ॥ ॥ जूती जगमाया नर केरी काया, जिम बादरकी बाया मारी ॥ ए आंकणी ॥ ज्ञानांजन कर खोल नयण मम, सद्गुरु श्णे विध प्रगट लखाइ री॥जू॥ ॥ १ ॥ मूल विगत विषवेल प्रगटिक, पत्ररहित त्रिनुवनमें बारी॥ तास पत्र चुंग खात मिरगवा, मुखबिन अचरिज देख हुँ आइ री ॥ ॥ ॥ पुरु ष एक नारी निपजाइ, तेतो नपुंसक घरमें समा री ॥ पुत्र जुगल जाये तिण बाला, ते जगमांहे अ धिक उखदाइ री॥ जू० ॥३॥ कारण बिन कार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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