Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 99
________________ ७६ चिदानंदजी कृत पद. ये ममता नांदी॥ सद्गुरु ए नेद लखाया। जू॥३॥ ॥पद पच्चासमुं॥ राग सोरठ ॥ ॥ बातम ध्यान समान ॥ जगतमें ॥ श्रा० ॥ साधन नवि कोन थान ।। जग ॥ ए अांकणी॥ रूपातीत ध्यानके कारण, रूपस्थादिक जान ॥ ता हमें पिमस्थ ध्यान पुन, ध्याताकू परधान ॥ जग॥ ॥१॥ ते पिंमस्थ ध्यान किम करियें, ताको एम विधान ॥ रेचक पूरक कुंजक शांतिक, कर सुखमन घर आन ॥ जग ॥ ॥ प्रान समान उदान व्यानकू, सम्यक् ग्रहहुँ अपान ॥ सहज सुनाव सुरंग सनामें, अनुन अनहद तांन ॥ जग ॥ ॥ ३ ॥ कर आसन धर शुचि सममुसा, ग्रही गुरुगम ए ज्ञान॥अजपा जाप सोहं सु समरनां,कर. अनुजव रस पान ॥ जग ॥४॥ बातम ध्यान जरतचक्री लह्यो, नवन आरीसा ज्ञान ॥ चिदानंद गुन ध्यान जोग जन, पावत पद निरवाण ॥जग॥५॥ इति ॥ ॥ पद एकावनमुं॥ राग शोरत गिरनारी॥ ... ॥प्रनु मेरो मनडो हटक्यो न माने ॥प्रनु०॥ ए यांकणी ।। बहुत नांत समजायो याकू, चोडेहू अरु गने ॥ पण श्म शीखामण कबु रंचक,धारत नवि नि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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