Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 88
________________ चिदानंदजी कृत पद. ७५ ॥ पद बत्रीशमुं॥ राग आशावरी ॥. ॥अवधू पियो अनुनच रस प्याला, कहत प्रेम मतिवाला ॥ अ॥ ए यांकणी ॥ अंतर सप्तधात रस नेदी, परम प्रेम उपजावे ॥ पूरव नाव अवस्था पलटी, अजब रूप दरसावे ॥श्र॥१॥ नख शिख रहत खुमारी जाकी, सजल सघन धन जैसी। जिन ए प्याला पिया तिनकू, और केफरति कैसी॥०॥ ॥॥ अमृत होय हलाहल जाकू, रोग शोक नवि व्यापे ॥ रहत सदा गरकाव निसामें, बंधन ममता कापे॥१०॥३॥ सत्य संतोष हीयामें धारे,बातम काज सुधारे ॥ दीन नाव हिरंदे नही आणे, अपनो बिरुद संजारे। अ०॥४॥जावदया रणथंन रोप के, अनहद तूर बजावे ॥ चिदानंद अतुलीबल राजा, जीत अरि घर आवे ॥ अ० ॥ ५ ॥ इति पदं ॥ ॥पद तेत्रीशमुं॥ राग आशावरी॥ ॥ मारग साचा कोन न बतावे। जासुंजाय पूबी ये तेतो, अपनी अपनी गावे ॥ मारग ॥ ए अांक पी॥ मतवारा मतवाद वाद धर, थापत निज मत नीका ॥ स्यादवाद अनुनव बिन ताका, कथन स का ॥मा० ॥१॥ मतवेदांत ब्रह्मपद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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