Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 113
________________ (१००) ॥ अथ श्री आनंदघनजी कृतपद १०६ मुं॥ रागनट्ट ॥ किनगुन नयो रे उदासी नमरा ॥कि ॥ पंख तेरी कारी मुख तेरा पीरा, सब फूलनको वासी ॥न ॥ कि० ॥१॥ सब कलियनको रस तुम लीनो, सो क्यूं जाय निरासी ॥ ॥ किं॥२॥ आनंद घन प्रनु तुमारे मिलनकुं, जाय करवत न्यूं कासी ॥ नम् ॥ कि० ॥३॥ ॥अथ श्री आनंदघनजी कृतपद १०७ मुं॥ सगवसंत ॥तुम झान विनो फूली बसंत,मन मधुकरही सु खसों रसंत ॥ तु ॥ १ ॥ दिन बडे नये बैरागना व, मिथ्यामति रजनीको घटाव ॥ तु० ॥ ॥ बढ़ फूली फेली सुरुचि वेल, ग्याताजनसमतासंगकेल ॥ तु० ॥३॥ द्यानत बानी पिक मधुररूप, सुर नर पशु यानंद घन सरूप ॥ तु० ॥४॥ ॥ इति मुनि श्री आनंदघनजी तथा मुनि श्री ___ चिदानंदजी कृत पद समाप्त ॥' Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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