Book Title: Anandghanji tatha Chidanandji Virachit Bahotterio
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 60
________________ आनंदघनजी कृत पद. १७ और है, आनंदघन तत सोई॥चे॥३॥ इति पदं॥ ॥ पद नेवुमुं ॥ राग शोर ।। ॥ साखी सोरठो ॥ ॥अण जोवंता लाख,जोवे तो एक नहीं ॥ लाधी जोवन साख, वाहाला विण एलें ग॥१॥ ॥महोटी वहूयें मन गमतुं कीg ॥ म ॥ म॥ए आंकणी ॥ पेटमें पेशी मस्तक रेहेंसी, वेरी साही स्वामीजीने दीधुं ॥ म० ॥ १ ॥ खोले बेसी मीतुं बोले, का अनुभव अमृत जल पीधुं । बानी बानी बरकडा करती, बरती आंखें मनडुं वींध्यं ॥ मो॥ ॥ २ ॥ लोकालोक प्रकाशक डैयुं, जणता कारज सीधुं ॥ अंगो अंगें रंगनर रमतां, आनंदघन पद लीधुं ॥ म० ॥ ३ ॥ इति पदं ॥ ॥ पद एकाणुमुं॥ राग मारु॥ ॥वारो रे को परघर रमवानो ढाल, न्हानी व दुने परघर रमवानो ढाल ॥ ए आंकणी ॥ परघर रम तां था जूग बोली, देशे धणीजीने बाल ॥ वारो॥ ॥१॥ अलवे चाला करती हीमे, लोकडां कहे ने बी नाल ॥ संजडा जण जणना लावे, हैडे नपासे शा ल॥ वारो ॥ २ ॥ बारे पडोसण जुने लगारेक, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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