Book Title: Tattvagyan Vivechika Part 01
Author(s): Kalpana Jain
Publisher: Shantyasha Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 60
________________ हैं, नरक आदि पापबंध से भी बच जाते हैं, शारीरिक स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है, समाज में मान-प्रतिष्ठा भी मिल जाती है; परन्तु इतना सब होने पर भी शुद्धता/वीतरागता के अभाव में उन्हें निराकुल अतीन्द्रिय आनन्द प्राप्त नहीं होता है। वे मोक्षमार्गी नहीं हैं, संसारमार्गी ही हैं; कषाय की मंदता को ही धर्म मान लेने के कारण अगृहीत मिथ्यात्व को पुष्ट करनेवाले गृहीत मिथ्यात्वी हो जाने से सम्यक् रत्नत्रयरूप वास्तविक धर्म को प्रगट करने की अपनी पात्रता भी नष्ट कर बैठते हैं; अतः ऐसी प्रवृत्तिओं से सतत सावधान रहना चाहिए। प्रश्न 4: दर्शनप्रतिमा का स्वरूप स्पष्ट कीजिए। उत्तरः दर्शनमोह, अनंतानुबंधी और अप्रत्याख्यानावरण संबंधी क्रोधादि के अनुदय में व्यक्त हुई वीतरागता के साथ, प्रत्याख्यानावरण आदि कषायों के उदय में होनेवाले आठ मूलगुणों के निरतिचार पालनरूप और सप्तव्यसनों के निरतिचार त्यागरूप शुभभावों और तदनुकूल शुभ क्रियाओंमय समग्रदशा को दर्शनप्रतिमा कहते हैं। कविवर पं. बनारसीदास जी वहीं, छंद 59 में इसे निम्नलिखित शब्दों द्वारा स्पष्ट करते हैं - “आठ मूलगुण संग्रहै, कुव्यसन क्रिया न कोइ। . दर्शनगुण निर्मल करै, दर्शनप्रतिमा सोइ।। आठ मूलगुणों का संग्रह/पालन करनेवाला, कुव्यसन क्रियाओं का त्याग करनेवाला, निर्मल दर्शन गुण से सम्पन्न जीव दर्शन प्रतिमाधारी श्रावक है।" जिनागम में श्रावक के आठ मूलगुणों का विश्लेषण देश, काल संबंधी परिवर्तित परिवेश के अनुसार अनेक प्रकार से किया गया है; जैसे पाँच उदुम्बर फलों का त्याग, मद्य-माँस-मधु रूप तीन मकार का त्याग, रात्रि भोजन का त्याग, अनछने जल का त्याग, अहिंसा आदि पाँच अणुव्रतों का पालन, जीवदया का पालन, देवदर्शन की प्रतिज्ञा आदि । इन सभी में नामों का भेद होने पर भी भाव एकमात्र यही है कि आठ मूलगुणधारी जीव स्थूलरूप में हिंसा आदि पाँच पापों से बचकर, अपने जीवन को देव-शास्त्र-गुरु के सान्निध्य से वीतरागतामय बनाने का प्रयास करता है। त्रस हिंसा आदि से बचने के लिए असंख्य त्रस राशि के भंडार उदुम्बरफल आदि का त्याग करता है तथा अहिंसा अणुव्रत आदि का पालन करता है। हिंसा आदि पाँच पापों से स्थूल रूप में बचने के लिए यह अतिचार सहित जुआ खेलना, माँस भक्षण, मदिरापान, वेश्यागमन, शिकार करना, चोरी करना, परस्त्री रमण करना – इन सात व्यसनों तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग एक /55

Loading...

Page Navigation
1 ... 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146