Book Title: Tattvagyan Vivechika Part 01
Author(s): Kalpana Jain
Publisher: Shantyasha Prakashan

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Page 127
________________ उत्तरः इस असंख्यात प्रदेशी लोकाकाश में निरंतर परिणमनशील तथा गतिमान अनंतानंत जीव-अजीव द्रव्य विद्यमान होने से उनमें परस्पर घनिष्ठतम निमित्त-नैमित्तिक संबंध भी सहज बनता रहता है । जीव के परिणाम और पुद्गल कर्म का भी ऐसा ही सहज निमित्त-नैमित्तिक संबंध है। अपनी-अपनी योग्यता से एक ही समय दोनों में कार्य होते रहने से जिस पर अनुकूलता का आरोप आता है, उसे उपचार से उसका कर्ता कह दिया जाता है। इसे निमित्त-नैमित्तिक संबंध की मुख्यता से वास्तविक निमित्त का ज्ञान कराने के लिए असद्भूत व्यवहार नय की अपेक्षा ऐसा कहा जाता है कि ज्ञानावरण कर्म के क्षय से केवलज्ञान हुआ, कर्म के उदय से शरीर में रोग हुआ इत्यादि। निमित्त-नैमित्तिक संबंध का ज्ञान कराने के लिए जिनागम में ऐसे अनेकांनेक कथन उपलब्ध हैं; परन्तु वे सभी कालप्रत्यासत्ति की मुख्यता से (एक समय में घटित हुई घटनाओं की अपेक्षा) किए गए औपचारिक कथन समझना चाहिए। स्वयं से अभिन्न और पर से भिन्न अनन्त धर्मात्मक वस्तु की स्वतन्त्र शाश्वत सत्ता सिद्ध करनेवाले भाव-अभाव धर्म की ओर से देखने पर यह ज्ञात होता है कि वास्तव में कोई भी द्रव्य किसी भी अन्य द्रव्य का/उसके कार्य का रंचमात्र कर्ता, हर्ता, धर्ता नहीं है। यह वस्तु-स्वातन्त्र्य ही मोह, राग, द्वेषादि विकारी भावों को नष्ट करने का; अतीन्द्रिय आनन्दमय जीवन जीने के लिए विश्व-व्यवस्था, वस्तु-व्यवस्था को समझने का अनुपम वरदान है। ___. प्रश्न 22: निम्नलिखित जोड़ों में सहेतुक पारस्परिक अभाव को स्पष्ट कीजिए। . क. इच्छा और भाषा, ख. चश्मा और ज्ञान, ग. शरीर और वस्त्र, घ. शरीर और जीव। उत्तरः निम्नलिखित जोड़ों में पारस्परिक अभाव इसप्रकार है - क. इच्छा और भाषा - इच्छा जीव द्रव्य के चारित्र गुण की विकृत पर्याय होने से और भाषा भाषा वर्गणारूप पौद्गलिक स्कन्ध का परिणमन होने से इन दोनों में पारस्परिक अत्यन्ताभाव है। ___ ख. चश्मा और ज्ञान - चश्मा आहारवर्गणारूप पौद्गलिक स्कन्ध का परिणमन होने से तथा ज्ञान जीव के ज्ञानगुण की पर्याय होने से इन दोनों में पारस्परिक अत्यन्ताभाव है। . चार अभाव /122

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