Book Title: Tattvagyan Vivechika Part 01
Author(s): Kalpana Jain
Publisher: Shantyasha Prakashan

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Page 64
________________ आचार्य समन्तभद्रस्वामी रत्नकरण्डश्रावकाचार के श्लोक 138 में इसका नाम व्रतिक लिखते हैं। व्रती को परिभाषित करते हुए आचार्य उमास्वामी मोक्षशास्त्र सातवें अध्याय के 18वें सूत्र में लिखते हैं – “निःशल्योव्रती - शल्य रहित व्रती है।" माया, मिथ्या और निदान इन तीन शल्यों से रहित जीव ही व्रती है। काँटे के समान चुभन/आकुलतामय परिणाम शल्य कहलाते हैं। व्रती कभी भी मायाचारी/ प्रदर्शन/दिखावे के माध्यम से स्व या पर को ठगने का प्रयास नहीं करता है; आत्मकल्याणकारी कार्यों में अपनी शक्ति को नहीं छिपाता है; धर्म प्रभावना आदि के कार्यों में धन, समय, शक्ति आदि को नहीं छिपाता है - इत्यादि प्रकार के परिणाम माया शल्य से रहित परिणाम हैं। ___मिथ्यात्व का अभाव हो जाने से इस व्रती के किसी भी रूप में मिथ्या प्रवृत्तिओं, मिथ्या मान्यताओं, मिथ्या आचरणों, मिथ्या क्रियाओं का पोषण नहीं होता है। अपनी किसी कमजोरी वश कोई विशिष्ट प्रकार का आचरण आदि नहीं कर पाने पर यह जीव पूर्णतया निःशल्यभाव से ईमानदारी पूर्वक यह स्वीकार करता है कि मैं भले ही ऐसा नहीं कर पा रहा हूँ; तथापि करना तो ऐसा ही चाहिए – इत्यादि प्रकार की पवित्र परिणति को मिथ्याशल्य का अभाव कहते हैं। आत्मवैभव में संतुष्ट यह व्रती श्रावक अपनी साधना के फल में कभी भी इस लोक-परलोक संबंधी पंचेन्द्रिय विषय-भोग सामग्री की इच्छा नहीं करता है; स्वाधीन आत्मिक अतीन्द्रिय आनन्द के सामने इसे कोई भी लौकिक सामग्री, पद, प्रतिष्ठा, मान-सम्मान आदि महत्त्वपूर्ण प्रतीत नहीं होता है; इसके मन में उनके प्रति सहज उदासीनता बनी रहती है; यही कारण है कि लोक संबंधी महान से महान उपलब्धि भी इसे मुग्ध/आकर्षित नहीं कर पाती है; यह उसकी इच्छा नहीं करता है – इत्यादि प्रकार के परिणाम निदान शल्य से रहित परिणाम हैं। ___इसप्रकार यह व्रत प्रतिमाधारी श्रावक विशिष्ट वीतरागता सम्पन्न, बारह व्रतों से सहित और तीनं शल्यों से रहित होता है। इनमें से विशिष्ट वीतरागता वास्तविक धर्म होने से निश्चय व्रत प्रतिमा है तथा बारहव्रत सहित, तीन शल्य रहित शुभभाव और तदनुकूल शुभ प्रवृत्तिआँ वास्तविक धर्म नहीं होने पर भी उसकी निमित्त और सहचारी होने के कारण उपचार से व्यवहार व्रत प्रतिमा कहलाती हैं। प्रश्न 7: सामायिक प्रतिमा का स्वरूप स्पष्ट कीजिए। तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग एक /59

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