Book Title: Tattvagyan Vivechika Part 01
Author(s): Kalpana Jain
Publisher: Shantyasha Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 70
________________ "प्रथमहिं सामायिक दशा, चार पहर लौं होय । अथवा आठ पहर रहे, प्रोषध प्रतिमा सोय।। जहाँ पूर्व वर्णित सामायिक की दशा कम से कम चार प्रहर अर्थात् 12 घंटे और अधिक से अधिक आठ प्रहर अर्थात् 24 घंटे पर्यंत बनी रहती है, उसे प्रोषधप्रतिमा कहते हैं।" प्रोषधोपवास का स्वरूप समझने के लिए विभिन्न आचार्यों द्वारा किए गए 'प्रोषधोपवास' शब्द के व्युत्पत्तिपरक अर्थ भी द्रष्टव्य हैं। जो इसप्रकार हैं - आचार्य समंतभद्रस्वामी रत्नकरण्डश्रावकाचार के 109वें श्लोक में लिखते हैं - ___ "चतुराहारविसर्जनमुपवासः प्रोषधः सकृद्भुक्तिः । स प्रोषधोपवासो, यदुपोष्यारम्भमाचरति।। चारों प्रकार के आहार का त्याग उपवास और एक बार भोजन प्रोषध कहलाता है। जो धारणा पारणा के दिन प्रोषध पूर्वक घर के आरम्भ आदि को छोड़कर उपवास प्रारम्भ करता है, वह प्रोषधोपवास है।" इसका विश्लेषण आचार्य पूज्यपाद स्वामी सर्वार्थसिद्धि में इसप्रकार करते हैं - "प्रोषधशब्दः पर्व पर्यायवाची।....प्रोषधे उपवासः प्रोषधोपवासः - प्रोषध और पर्व शब्द पर्यायवाची हैं/प्रोषध का अर्थ पर्व है। ....पर्व में उपवास प्रोषधोपवास है।" कुमार कार्तिकेयस्वामी अपने कार्तिकेयानुप्रेक्षा नामक ग्रंथ में प्रोषधोपवास शिक्षाव्रत के प्रकरण में गाथा 358-359 द्वारा प्रोषधोपवास को परिभाषित करते हैं; जिसका भाव इसप्रकार है – “जो श्रावक सदा दोनों पर्यों में स्नान, विलेपन, भूषण, स्त्री-संसर्ग, गंध, धूप आदि का त्यागकर; वैराग्यरूपी भूषण से भूषित हो उपवास, एक बार भोजन या निर्विकृति भोजन करता है, वह प्रोषधोपवास व्रत है। । निष्कर्ष यह है कि प्रोषधोपवास में यथा-शक्ति भोजन-त्याग के साथ ही आरम्भ-परिग्रह का त्यागकर अधिकाधिक अपना उपयोग धर्मध्यान में लगाने की मुख्यता है। कितने समय पर्यंत ऐसी दशा रही - इसकी अपेक्षा इस प्रोषधोपवास के उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य की अपेक्षा तीन भेद हैं। 16 प्रहर/48 घंटे पर्यंत आरम्भ-परिग्रह के त्याग पूर्वक धर्मध्यान में उपयोग रहना उत्कृष्ट; 12 प्रहर/36 घंटे पर्यन्त रहना मध्यम और 8 प्रहर/24 घंटे पर्यन्त ऐसी अवस्था रहना जघन्य प्रोषधोपवास है। इसकी विधि जानने के लिए 'वीतराग विज्ञान विवेचिका', पृष्ठ 222 का अध्ययन करें। ' तत्त्वज्ञान विदेचिका भाग एक /65

Loading...

Page Navigation
1 ... 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146