Book Title: Tattvagyan Vivechika Part 01
Author(s): Kalpana Jain
Publisher: Shantyasha Prakashan

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Page 123
________________ सिद्ध नहीं होने पर चार गति, चौरासी लाख योनिआँ, गुणस्थान, मार्गणास्थान, जीवसमास आदि कुछ भी सिद्ध नहीं हो सकेंगे। .. ___ अत्यन्ताभाव नहीं मानने पर जड़ और चेतन की पृथक्-पृथक् सत्ता सिद्ध नहीं होने से वैज्ञानिक शोध-खोज के लिए कहीं कोई अवसर नहीं रहेगा। जन्म, जरा, रोग, मरण आदि के लिए अवसर नहीं रहने से डॉक्टर, मेडीसन आदि भी अनावश्यक हो जाएंगे। निष्कर्ष यह है कि अत्यन्ताभाव नहीं मानने पर वस्तु की स्व-स्वरूप-सम्पन्न सत्ता सिद्ध नहीं होने से लौकिक तथा अलौकिक उन्नति आदि के लिए कहीं कोई अवसर शेष नहीं रह जाने के कारण पुरुषार्थ पूर्णतया कुण्ठित हो जाएगा; जो कि वस्तु-व्यवस्था के पूर्णतया विरुद्ध है। ___ प्रश्न 14: अत्यन्ताभाव को समझने से होनेवाले लाभों को स्पष्ट कीजिए। उत्तरः अत्यन्ताभाव को समझने से होनेवाले कुछ प्रमुख लाभ निम्नलिखित die 1. सभी द्रव्यों में पारस्परिक अत्यन्ताभाव होने से एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कर्ता, धर्ता, हर्ता नहीं है - यह समझ में आ जाने पर कोई भला या बुरा कर देगा - इस मान्यता को लेकर होनेवाली परमुखापेक्षी या भय-वृत्ति नष्ट होकर जीवन स्वतंत्र, स्वाधीन, निर्भय हो जाता है। 2. इसी समझ के बल पर पर-कर्तृत्व का भाव भी नष्ट हो जाता है; जिससे जीवन सहज निराकुल, निश्चिंत, तनावमुक्त, निर्भार हो जाता है। ___3. इसी समझ के बल पर 'अनुकूल संयोग आदि सुख के कारण हैं' - यह मान्यता नष्ट हो जाने से उन्हें एकत्रित करने का भाव समाप्त हो जाता है; जिससे जीवन सहज ही आरम्भ-परिग्रहमय अशुद्ध भावों से रहित हो जाता है। 4. इसी समझ के बल पर 'हम स्वयं ही अपने दोषों/दुःखों के जिम्मेदार हैं, कोई कर्म आदि या अन्य पर पदार्थ नहीं' - यह सत्य स्वीकृत हो जाने से अपने दोषों को नष्ट करने की अपनी जिम्मेदारी समझकर आत्मोन्मुखी वृत्ति द्वारा उन्हें नष्ट करने की दिशा में पुरुषार्थरत हो जाते हैं। 5. इसी समझ के बल पर स्व-पर का यथार्थ भेदविज्ञान जागृत हो जाने से उपयोग सहज ही पर से हटकर स्वरूप-स्थिर हो जाता है; जिससे जीवन सहज ही सम्यक् रत्नत्रय सम्पन्न अतीन्द्रिय आनन्दमय हो जाता है। चार अभाव /118

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