Book Title: Tattvagyan Vivechika Part 01
Author(s): Kalpana Jain
Publisher: Shantyasha Prakashan

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Page 128
________________ ग. शरीर और वस्त्र - शरीर आहार वर्गणारूप पुद्गल का एक स्वतन्त्र स्कन्ध होने से तथा वस्त्र आहार वर्गणारूप पुद्गल का एक स्वतन्त्र स्कन्ध होने से इन दोनों में पारस्परिक अन्योन्याभाव है । घ. शरीर और जीव - शरीर आहार वर्गणारूप पौद्गलिक स्कन्ध का स्वतन्त्र परिणमन होने से तथा जीव स्वचतुष्टयात्मक सत्ता सम्पन्न एक स्वतन्त्र पृथक् द्रव्य होने से इन दोनों में पास्परिक अत्यन्ताभाव है । प्रश्न 23: इन चार अभावों के अतिरिक्त क्या और भी कोई अभाव होते हैं ? उत्तरः जिनागम में इन चार अभावों के अतिरिक्त कुछ अन्य अभावों का भी वर्णन उपलब्ध है। वह इसप्रकार - 1. तदभाव/अतद्भाव/स्वरूपाभाव - आचार्य कुन्दकुन्ददेव तदभाव को स्पष्ट करते हुए प्रवचनसार में गाथा 106 से 108 पर्यन्त लिखते हैं। "पविभत्तपदेसत्तं, पुधत्तमिदि सासणं हि वीरस्स । अण्णत्तमतब्भावो, ण तब्भवं होदि कधमेगं । 1106 ।। सद्दव्वं सच्च गुणो, सच्चेव य पज्जओ त्ति वित्थारो । जो खलु तस्स अभावो, सो तदभावो अतब्भावो । । 107।। जं दव्वं तं णगुणो, जो वि गुणो सो ण तचमत्थादो । एसो हि अतब्भावो, णेव अभावो त्ति णिद्दिट्ठो । । 108 । । विभक्त प्रदेशत्व (जिनके प्रदेश पृथक्-पृथक् हैं वह ) पृथक्त्व और अतद्भाव (उस रूप नहीं होना) अन्यत्व है । जो उसरूप नहीं हो, वह एक कैसे हो सकता है ? ऐसा वीर का शासन / उपदेश है । सत् द्रव्य, सत् गुण और सत् पर्याय- इसप्रकार सत् का विस्तार है । (उनमें परस्पर) जो वास्तव में उसका अभाव / उस रूप होने का अभाव' है, वह तद्अभाव या अतद्भाव है। (संज्ञा, संख्या, लक्षण आदि की अपेक्षा) जो द्रव्य है, वह गुण नहीं है और जो गुण है वह द्रव्य नहीं है - यह अतद्भाव है, सर्वथा अभाव वह अतद्भाव नहीं है - ऐसा (भगवान ने बताया है । " 1 इन गाथाओं में पृथक्ता और अन्यता का भेद स्पष्ट करते हुए तदभाव की चर्चा की गई है। जिनके प्रदेश पृथक्-पृथक् होते हैं, उनमें परस्पर पृथक्ता होती तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग एक / 123

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