Book Title: Tattvagyan Vivechika Part 01
Author(s): Kalpana Jain
Publisher: Shantyasha Prakashan

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Page 139
________________ चाहते हैं तो समय-समय पर उन कीड़े-मकोड़ों के घर बनाने के पूर्व ही सब ओर साफ-सफाई कर लेना चाहिए; जिससे वे अपने घर बना ही नहीं सकें । 4. द्रोपदी का जीव दो भव पूर्व आर्यिका था । एक बार वन में एक वेश्या से उसके पाँच यार विषय-सुख 'की माँग कर रहे थे। यह देखकर उन आर्यिका को यह भाव आया कि 'अहो ! इसका जीवन कितना सुखमय है ।' उस पाप की अनुमोदना करने के कारण वर्तमान द्रोपदी भव में महासती होने पर भी पाँच पति का कलंक सहन करना पड़ा। इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि स्वयं तो पाप करना ही नहीं, कराना भी नहीं करते हुए की अनुमोदना भी नहीं करना; क्योंकि अनुमोदना के फल में निष्पाप जीवन पर भी पाप का कलंक लग जाता है। " 5. कीचक की घटना से हमें यह सीखने को मिलता है कि बुरे भावों का फल रा भोगना ही पड़ेगा अतः बुरे भावों से बचें। 6. पाँचों पाण्डवों पर इतना भयंकर उपसर्ग होने पर भी वे आत्माराधना से च्युत नहीं हुए; इसका अर्थ यह है कि इतनी भयंकर परिस्थिति में भी उस परिस्थिति से भिन्न आत्माराधना सम्भव है - इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि परिस्थितिओं का वहाना बनाकर आत्माराधना से विमुख नहीं होना चाहिए। यह पूर्णतया अपने पुरुषार्थ पर निर्भर है, परिस्थितिओं पर नहीं । 7. तीन पाण्डवों की मुक्ति और दो के सर्वार्थसिद्धि-गमन से भी हमें यह शिक्षा मिलती है कि वाह्य परिस्थितिऔँ, प्रवृत्तिआँ, दशाएं समान होने पर भी अन्तरोन्मुखी पुरुषार्थ में अन्तर होने से अवस्थाएं पृथक्-पृथक् हो गईं। इतना सा परलक्षी परिणाम भी इतना लम्बा संसार बढ़ाने में समर्थ है । हम अन्य के संबंध में विविध विकल्पों के माध्यम से अपना संसार तो बढ़ा सकते हैं; पर उसका कुछ भी कर पाना सम्भव नहीं है; अतः ऐसे निरर्थक विकल्पों से वश हो; एक स्वरूप - स्थिरता ही कर्तव्य है । 8. कृष्ण द्वारा देश निकाला दिए जाने की घटना से यह शिक्षा मिलती है कि वैसे तो हँसी-मजाक करना स्वयं में ही कषायमय कार्य होने से बुरा है ही; तथापि परिस्थिति की गंभीरता का विचार किए बिना, अपने उपकारी के साथ किया गया हँसी-मजाक तो अत्यधिक अनर्थकारी सिद्ध हो जाता है; अतः ऐसे दुष्कृत्यों से दूर रहते हुए अपना जीवन सरल, निश्छल बनाना चाहिए । इत्यादि अनेकानेक शिक्षाएं इस कहानी से हमें प्राप्त होती हैं । पाँच पाण्डव / 134

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