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दूसरा भाग।
की मृत्यु हुई और वह नरक गया । नारायणकी आयु दश लाख वर्षकी थी और शरीर पेंतालीस धनुष ऊँचा था ।
(७) लाखों वर्षों तक राज्य कर अंतमें नारायण-पुरुषसिंह भी नर्क गया । भाईकी मृत्युसे बलभद्रने बहुत शोक किया था । अंतमें श्री धर्मनाथ तीर्थकरके समीप दिक्षा ली और मुक्ति गये।
पाठ ७। चक्रवर्ति मघवा ।
( तृतीय चक्रवर्ति ) तीसरे चक्रवर्ति मघवा अयोध्याके राजा सुमित्र और रानी सुभद्राके पुत्र थे। आपका वंश इक्ष्वाकु था । आयु पांच लाख वर्षकी और शरीरकी ऊंचाई एक सो सत्तर हाथ थी। इनको चक्ररत्न आदि सात निर्जीव और सात सनीव रत्न प्राप्त हुए थे । नवनिधियां थीं, इनकी पूर्ण संपत्तिका वर्णन परिशिष्ट 'ख' में दिया गया है । इन्होंने छह खण्ड पृथ्वी विजय की। बत्तीस हजार राजाओंके ये स्वामी थे । छनवे हजार रानियाँ थीं। लाखों वर्ष राज्यकर अन्तमें अभयघोष जिनके समीप दिक्षाधारण की और तपकर मोक्ष गये । आपके पुत्रका नाम प्रियमित्र था । यही प्रियमित्र चक्रवर्ति मधवाका उत्तराधिकारी हुआ । मधवा चक्रवर्ति भगवान् धर्मनाथके तीर्थकालमें हुए थे।