Book Title: Prachin Jain Itihas Part 02
Author(s): Surajmal Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 150
________________ प्राचीन जैन इतिहास। १४१ सीताकी इस दशासे कृतान्तवक्र भी बहुत दुःखी हुआ। और जिस पराधीनताके कारण उसे यह कृत्य करना पड़ा । उस पराधीनताकी वह निंदा करने लगा । अतमें सीताको छोड़ वह चला गया । होश आने पर सीता रुदन करने लगी। (४) इसी वनमें पुंढरीकपूरका राजा वज्रनंघ अपनी सेना सहित हाथी पकडने आया था। सो उसके सैनिकोंने जब सीताका रुदन सुना तब ये लोग उसके पास गये । सीता इन्हें देख भय करने लगी । परन्तु सैनिकोंने सोताको धैर्य बँधाया और कहा कि राजा वज्रजंघ परमगुणी और शीलवान् हैं, वह आपकी सहायता करेगा। ऐसा कह सैनिकोंने वजनंघसे जब सीताके समाचार कहे तब वह सीताके पास आया और सीताको सर्व वृत्तान्त पूँछ कर कहने लगा कि तुम मेरी धर्म-भगिनी हो; मेरे घर पर चलो । वहीं आनन्दसे रहना। वज्रजंघ पुंढरीक नगरीका राजा था। इसके पिताका नाम द्वारदवाय और माताका सुबन्धु था। सोमवंशी था । वज्रघकी इस प्रकार अनचीती सहायतासे सीता गद्द हो गई और वजनंघको धन्यवाद दे उसके साथ चलनेको उद्यत हुई । वनजंघ सीताको पालकीमें बिठला कर पुंढरीकपुरको ले गया। मार्ग में प्रनाने भी सीताकी अभ्यर्थना की । पुंढरीकपुरमें भी सीताका प्रजाने बहुत भारी स्वागत किया। नगर सजाया। द्वार बनवाये । दान दिया । पूजन हुई । महराज वजनंधके कुटुम्बियोंने भी सीताका परमहर्षके साथ स्वागत किया । और सेवामें तत्पर रहे।

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