Book Title: Prachin Jain Itihas Part 02
Author(s): Surajmal Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 142
________________ प्राचीन जैन इतिहाम। १३३ विशल्या हाथी पर चढ़कर नगरमें आई । खूब दान दिया गया । साधुओंको भोजन करवाया फिर कुटुम्बियोंको भोजन - करवा कर भरतने भोजन किया । ___(७) भरतने देशभूषण केवलीके समीप दीक्षा धारण की। आपके साथ एक हजारसे कुछ अधिक राना और दीक्षित हुए । (८) भरतके दीक्षा लेनेपर इनकी माताने वहुत शोक किया । परन्तु फिर उन्होंने भी आर्यिकाके व्रत लिये । भरत घनघोर तप करके केवली हुए और मोक्ष पधारे। (९) भरतकी माता महारानी कैकयीने आर्यिकाके व्रत लिये। आपके साथ ३०० स्त्रियां और दीक्षित हुई। (१०) भरतके दीक्षा ग्रहण कर लेनेपर प्रजा रामके पास आकर राज्यभिषेककी प्रार्थना करने लगी । रामने कहा कि लक्ष्मण नारायण हैं उनका अभिषेक करना उचित है । प्रना उनके पास गई । परन्तु भ्रातृभक्त लक्ष्मणने अस्वीकार किया । अन्तमें दोनों भ्राताओंका राज्याभिषेक किया गया। दोनोंकी पटरानियों सीता और विशल्याका भी अभिषेक किया गया। राज्यभिषेकके समय राम, लक्ष्मणने जो जहांके राजा थे, उन्हें वहींके राजा माने । जिनका राज्य हरण हो गया था उन्हें राज्य दिया। (११) अपने लघु-भ्राता शत्रुघ्नसे रामने कहा कि तुम्हें कहांका राज्य चाहिये ! शत्रुघ्नने मथुराका मांगा । मथुरां उस समय महाराज मधुकी राजधानी थी। मधु महाबलवान् राजा था।

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