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प्राचीन जैन इतिहास | ९५
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साथी सब आश्चर्य करने लगे और लौटने लगे । विदग्व-विजय, मेरुक्रूर, श्रीनागदमन, धीर, शत्रुदमन आदि राजाओंने दीक्षा ली । कईएकोंने श्रावकों के व्रत लिये ।
(४) रामके वन चले ज नेके पश्चात् दशरथने सर्वभूति मुनिके पाससे दीक्षा धारण की और तप करने लगे । परन्तु इन्हें कभी २ पुत्रोंका स्मरण हो आया करता था । अन्तमें संसार भावनाका बार २ चितवन करने से दशरथका मोह छूटा |
(५) इधर रामचन्द्रकी माता कौशल्या और लक्ष्मणकी माता सुमित्रा पुत्र शोकसे विह्वल रहने लगीं । जब कैकयीने अपनी इन सपत्नियोंकी यह दशा देखी तब उसे करुणा उत्पन्न हुई । उसने पुत्र भरत से कहा कि बेटा, यद्यपि तुम्हारी बड़े २ राजा सेवा करते हैं परंतु राम, लक्ष्मणके विना राज्यकी शोभा नहीं है, वे परम गुणवान् और प्रतापी हैं, उन्हें शीघ्र जाकर लाओ । मैं भी उन्हें लौटा लानेके लिये तुम्हारे पीछे आती हूं । भरत इस आज्ञासे परम संतुष्ट हुए । और रामको लौटा लाने के लिये १००० सवारों तथा कई राजाओं सहित रामके पास गये । छः दिनों में रामचन्द्र के पास पहुंचे । कैकयी भी पहुंच गई बहुत कुछ कहा परन्तु राम नहीं लौटे । प्रत्युत भरतका अपने हाथसे वनमें राज्याभिषेक भी कर दिया । भरत आदि लौट आये | भरतने घर आकर द्युतिमट्टारककी साक्षीसे प्रतिज्ञा ली कि अबकी बार रामचन्द्रका मिलन होते ही मैं दीक्षा धारण करूंगा । तथा श्रावक के व्रत लिये । भरत धर्मात्मा थे ।
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